है रूप माँ का अति विकराल !
गले में है विद्युत की माल !!
तीन चक्षु वाली मेरी माँ ,
भागता डर के उनसे काल……
सहस्त्रार चक्र स्थित साधक है ,
ब्रम्हांड की सिद्धियां देती माँ !
सहस्त्रार चक्र पर स्थित सूर्य है ,
बाधा कलेश मिटाती माँ !
मंगल कारक देवी कालरात्रि हैं,
श्रद्धा भाव से चढ़े जयमाल ,,,,,,, है रूप माँ
नयनों की ज्योति राह दिखाए,
रूप देख कर पापी डर जाए!
इनके साधन अर्चन से ही,
पथ के सब कंटक मिट जाए!
व्यापार नौकरी धन देकर माँ,
करदे सबको मालामाल ,,,,,,,,, है रूप माँ
वाहन है इनका गर्दभ निराला ,
वर मुद्रा में दायाँ हाथ उठे !
श्वास प्रश्वास जलती ज्वाला ,
माथे चन्द्र मुकुट सोहे !
विनाशिका बन दुष्ट संहार करे.
दूर होती तमस रात्रि काल ,,,,,,,,है रूप माँ
सहस्त्रार चक्र स्थित साधक है ,
ब्रम्हांड की सिद्धियां देती माँ !
सहस्त्रार चक्र पर स्थित सूर्य है ,
बाधा कलेश मिटाती माँ !
मंगल कारक देवी कालरात्रि हैं,
श्रद्धा भाव से चढ़े जयमाल ,,,,,,, है रूप माँ
नयनों की ज्योति राह दिखाए,
रूप देख कर पापी डर जाए!
इनके साधन अर्चन से ही,
पथ के सब कंटक मिट जाए!
व्यापार नौकरी धन देकर माँ,
करदे सबको मालामाल ,,,,,,,,, है रूप माँ
वाहन है इनका गर्दभ निराला ,
वर मुद्रा में दायाँ हाथ उठे !
श्वास प्रश्वास जलती ज्वाला ,
माथे चन्द्र मुकुट सोहे !
विनाशिका बन दुष्ट संहार करे.
दूर होती तमस रात्रि काल ,,,,,,,,है रूप माँ
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