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Monday, September 22, 2014

''माँ ''


मन अथाह सागर है गहरा,
''माँ'' महिमा कैसे गाऊँ !
जितना भी मैं चाहूँ लिखना ,
कुछ भी मैं न लिख पाऊँ !!


दृष्टि तुम्हारी पावन पावन ,
दिल पर छाया करती है !
और कामनाएं  मेरे मन की , 
तुम्हारी दृष्टि तले सँवरती है !
सूरज की लाली लेकर मैं ,
''माँ ''अक्षत कुमकुम बिखराऊँ !!
जितना ……………


मेरी जिव्हा का पहला शब्द ,
भगवान से पहले ''माँ''आया !
मेरी राहों का पहला कदम ,
माँ तुम तक ही तो आया !
चाँदनी ले तुमसे शीतलता , 
''माँ ''तुमसा शीतल कैसे हो पाऊँ  !!
जितना  …………… 


मेरे प्राणों संग प्राण तुम्हारे , 
तुमसे ही तो जीवन मेरा !
मेरी हंसी की निश्चलता ,
तेरे नयनों के भाव भरे !
फूलों से रंग भीनें लेकर , 
''माँ ''तेरी चुनर को रंगता जाऊँ !! 
जितना ……………


जितनी खुशियाँ जितने सुख ,
तुमसे ही तो जो मैंने हैं पाये !
तुमने ही तो राहों में  मेरी ,
जगमग जगमग दीप जलाये !
दीपकों का उजियारा लेकर ,
''माँ''मैं सूरज सा बन जाऊँ !!
जितना भी मैं चाहूँ लिखना  ,
कुछ भी मैं न लिख पाऊँ …''तनु '' 
               












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