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Saturday, October 25, 2014

नमन मित्रों !!!

पाठ :-2 

 कल मैंने आपको दोहे की रचना कैसे करनी ये जानकारी दी.… आज मैं आप सबको कवित्त क्या है……  के बारे में बताऊँगी और  इसे कैसे रचा जाता है ये समझाऊँगी,,,,, आशा है इसे आप सब ध्यान से समझेंगे। 

तो सबसे पहले हम कवित्त की परिभाषा जानेंगे …

परिभाषा :-   ''''कवित्त एक प्रकार का छंद है। इसमें  चार चरण होते हैं और प्रत्येक चरण में 16  15 के विराम से 31 वर्ण होते हैं प्रत्येक चरण के अंत में ''गुरु''वर्ण होना चाहिए।  छंद  की गति को ठीक रखने के लिए 8, 8, 8 और 7 वर्णों पर ''यति ''रहना आवश्यक है।''''

इसमें लघु गुरु का कोई क्रम नियत नहीं है किन्तु वाचन को सहज और सरल रखने के लिए तकरीबन सभी कविगण लघु गुरु से पद का अंत करते हैं। 

एक तथ्य ऐसा है जिस पर अमल किया जाए ''''''गुरु गुरु गुरु ''''''से पदांत न हो।  ऐसा होगा तो जब हम कवित्त पढ़ेंगे तो लय भंग होगा । …… 

कभी कभी चरणो के वर्ण की गिनती के अनुसार  8 ,7, 9, 7  …हो सकती है।  ये दोष वैधानिक नहीं क्योंकि इससे छंद के गायन वाचन में कोई मुश्किल नहीं आती है यानि  वाचन में प्रवाह अवरुद्ध नहीं होता। 

ऐसा भी देखने में आता है कि  16 ,15 की यति भी 17,  14 या  15, 16  की व्यवस्था लिए हो सकती है। 


उदहारण :-
आते जो यहाँ हैं ब्रज भूमि की छटा को देख ,
नेक न अघाते होते मोद - मद  माते हैं।। 
जिस ओर जाते उस ओर मन भाये दृश्य ,
लोचन लुभाते और चित्त को चुराते हैं।।
पल भर अपने को वे भूल जाते सदा ,
सुखद अतीत सुधा - सिंधु में समाते हैं।।
जान पड़ता है उन्हें आज भी कन्हैया यहाँ ,
मैया मैया , टैरते हैं  गैया को चराते हैं। …अज्ञात

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