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Tuesday, October 7, 2014

प्रेम 



प्रेम अंकुरण के दो पल्लव ,
स्नेह सिंचन से मुखर हुए !
प्राण पवन की  जीत हुई ,
पात  ओस से सुजल हुए !! 



बाँहों के कोमल बंधन में ,
लता उलझी सुलझ गयी !
मृदु चांदनी की छाया में ,
पुष्प पंखुरी लरज गयी !!



किरण दिवाकर विलग नहीं ,
सुधा सुधाकर  सरस रहे !!
 नवांकुर या रुक्ष विटप हो ,
सुधा किरण संग हरष रहे !!



मृदा ''विश्व '' अंकुरण प्रेम ,
जगा  जगत मन कृष्ण रहे !
नदिया कल कल झरते झरने , 
गीत ''प्रीत''  मय उष्ण रहे !!,,,,,,,''तनु ''

















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