प्रेम
प्रेम अंकुरण के दो पल्लव ,
स्नेह सिंचन से मुखर हुए !
प्राण पवन की जीत हुई ,
पात ओस से सुजल हुए !!
बाँहों के कोमल बंधन में ,
लता उलझी सुलझ गयी !
मृदु चांदनी की छाया में ,
पुष्प पंखुरी लरज गयी !!
किरण दिवाकर विलग नहीं ,
सुधा सुधाकर सरस रहे !!
नवांकुर या रुक्ष विटप हो ,
सुधा किरण संग हरष रहे !!
मृदा ''विश्व '' अंकुरण प्रेम ,
जगा जगत मन कृष्ण रहे !
नदिया कल कल झरते झरने ,
गीत ''प्रीत'' मय उष्ण रहे !!,,,,,,,''तनु ''
प्रेम अंकुरण के दो पल्लव ,
स्नेह सिंचन से मुखर हुए !
प्राण पवन की जीत हुई ,
पात ओस से सुजल हुए !!
बाँहों के कोमल बंधन में ,
लता उलझी सुलझ गयी !
मृदु चांदनी की छाया में ,
पुष्प पंखुरी लरज गयी !!
किरण दिवाकर विलग नहीं ,
सुधा सुधाकर सरस रहे !!
नवांकुर या रुक्ष विटप हो ,
सुधा किरण संग हरष रहे !!
मृदा ''विश्व '' अंकुरण प्रेम ,
जगा जगत मन कृष्ण रहे !
नदिया कल कल झरते झरने ,
गीत ''प्रीत'' मय उष्ण रहे !!,,,,,,,''तनु ''
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