पा ली पाली पा पली--- पा पा पल पल पाल, ,,
जा ली जाली जा जली जा जा जल जल जाल, ,,अशोक शर्मा जी
जा ली जाली जा जली जा जा जल जल जाल, ,,अशोक शर्मा जी
यह गूढ़ता है इसमें अनुज
पा ली = ईश्वरत्व को
पाली = जीवन में उतारा है
पा पली =पाओगे उसको तो ही पलोगे
पा पा पल पल पाल =उसी में रम जा, पल भी व्यर्थ न खो
जा ली = बिन जाये बिना मन लगाये तो वो मिलेगा नहीं
जाली = नहीं गए तो व्यर्थ जीवन
जा जली = खोट में भ्रम में जाल में न जलो
जा जा जल जल जाल = वहीँ जाओ जहाँ जाल न हों. जाल जले हुए हों, या जहाँ पानी हो, और इस पानी के कितने अर्थ। ....
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