Labels

Wednesday, October 8, 2014

पा ली पाली पा पली--- पा पा पल पल पाल, ,,
जा ली जाली जा जली जा जा जल जल जाल, ,,अशोक शर्मा जी 
यह गूढ़ता है इसमें अनुज 
पा  ली =  ईश्वरत्व को
पाली = जीवन में उतारा है  
पा पली =पाओगे उसको तो ही पलोगे
पा पा पल पल पाल =उसी में रम जा, पल भी व्यर्थ न खो 

जा ली = बिन जाये बिना मन लगाये तो वो मिलेगा नहीं 
जाली = नहीं गए तो व्यर्थ जीवन 
जा जली =  खोट में भ्रम में जाल में न जलो 
जा जा जल जल जाल =  वहीँ जाओ जहाँ जाल न हों. जाल जले हुए हों, या जहाँ पानी हो, और इस पानी के कितने अर्थ। .... 

No comments:

Post a Comment