मित्रों नमन !!!
पाठ :-5
हम यहां थे……… जब अर्ध व्यंजन शब्द के प्रारम्भ में आता है तब भी यही नियम लागू होगा यानि अर्धव्यंजन की मात्रा गुम हो जायेगी …
पाठ :-5
हम यहां थे……… जब अर्ध व्यंजन शब्द के प्रारम्भ में आता है तब भी यही नियम लागू होगा यानि अर्धव्यंजन की मात्रा गुम हो जायेगी …
समझें ....
स्नान = २,१
अब इससे आगे -----
मित्रो नमन !!!हम व्यंजन और अर्धव्यंजन के बारे में जान चुके हैं अब आगे
हमने जाना जब अर्ध व्यंजन शब्द के शुरू में आता है तो भी यही नियम लागू होता है यानि अर्धव्यंजन की मात्रा गुम हो जाती है उदा -स्नान २,१
एक शब्द धर्मात्मा है ये इस प्रकार गिना जाएगा --धर्मात्मा-धर /मात /मा---२,२,२
कुछ अपवाद भी---अगर व्यंजन से पहले लघु मात्रिक अक्षर हो पर उस पके ऊपर लघु व्यंजन का भार नहीं पड़ रहा हो तो पहले लिखा गया वर्ण दीर्घ नहीं होगा उदा…… कन्हैया ……१,२,२ में न के पहले क है फिर भी यह दीर्घ नहीं होगा क्योंकि उस पर न का भार नहीं पड़ रहा है …
संयुक्ताक्षर जैसे =क्ष ,त्र ,ज्ञ ,ध्द ,द्व, ड्व आदि दो व्यंजनों के योग से बने होते हैं इसलिए ये दीर्घ मात्रिक हैं लेकिन मात्रा गिनती में खुद लघु होकर अपने पहले आने वाले लघु व्यंजन को दीर्घ कर देते हैं या पहै का व्यंजन स्वयं दीर्घ हो स्वयं लघु हो जाते है
आइए समझें .......
पत्र =२,१
वक्र =२,१
मूत्र =२,१
शुद्ध =२,१
क्रुद्ध =२,१
यज्ञ = २,१
यदि संयुक्ताक्षर शब्द शुरू हो रहा हो तब संयुक्ताक्षर लघु हो जाते हैं। …
आइए समझें ....
त्रिशूल = १,२,१
क्रमांक = १,२,१
क्षितिज = १,१,१
व्यंजन स्वयं दीर्घ हो तो भी दीर्घ स्वर युक्त संयुक्ताक्षर दीर्घ माने जाते हैं
आइये समझें ....
प्रज्ञा =२,२
राजाज्ञा =२,२,२
सबके समझ में आसानी से आ जाए इसलिए ये लेख.… ''मात्रा गणना विधान'' अति सूक्ष्म रूप में प्रस्तुत किया है। …
…
…
अब कुछ शब्दों की मात्रा देखते हैं
छंद = २,१
विधान =१,२,१
तथा = १,२
सयोग = २,२,१
निर्माण =२,,२,१
सूत्र =२,१
समझना =१,१ ,१,२,
सहायक =१, २,१,१
चरण=१,१,१
अथवा= १,१,२
अमरत्व १,१,२,१
''मात्रा गणना विधान '' के अपवादों पर अगर कोई कुछ कहना चाहे तो पाठ बनाकर प्रेषित कर सकता है क्योंकि ये बहुत विस्तृत विषय है
''मात्रा गणना विधान '' के अपवादों पर अगर कोई कुछ कहना चाहे तो पाठ बनाकर प्रेषित कर सकता है क्योंकि ये बहुत विस्तृत विषय है
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