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Saturday, May 30, 2015

सफर की तैयारियां ,        ये कैसी हो गयीं 
जिगर की बेताबियाँ         ये कैसी हो गयी  
क्या हुआ जो अब ना हम मिल पाएंगे कभी   
सिफर की निशानियाँ ,       ये वैसी हो गयी ''तनु ''

Friday, May 29, 2015

दोस्त 

यार दोस्ती में----- मैं नादान, बन गया ;
मैं मानता हूँ ------ मैं इंसान, बन गया !

हश्र में भी ---   निगाहें  तेरी तरफ ही थी;
ना जाने फिर क्यों तू अनजान, बन गया ! 

देखा किये हमें ,----  हँसते रहे हमीं पर ;
क्यों सोचते थे सब तू इंसान ? बन गया !

सोच रहा झुक कर, तू दस्त थाम लेगा;
मुँह फेर लेना तिरा अरमान,  बन गया!

लेकर  चला  हूँ,      मैं कश्ती कनारे पे ;
साहिल तुझे समझा तूफ़ान, बन गया !!! , ,,.... ''तनु ''

ये कैसी आई   है   आफत,पता नहीं ;
खुदाया वो  भी है सलामत पता नहीं!

दर - ओ - दीवार वही, जाने ना निस्बत !                   
किससे करूँ अब मैं शिकायत,पता नहीं !!

इसी बस्ती में, ------रूह पनाह लेती थी !
क्यों वो लिए बैठे अदावत , --पता नहीं !!

जख्म यादों के दिए,----- मेरी आँखों को !
आँखें  रोकर करे बगावत,---- पता नहीं !!

शब  भी  सायों  से  पनाह  माँगती  रही !
चाँद क्यों ना बन सका चाहत, पता नहीं !!

समन- ज़ार  से आबाद थी मज़ार मिरी !
''तनु'' छोड़ दी किसने शराफत, पता नहीं !!

समन- ज़ार = चमेली के फूलों से ढँकी  हुई 
निस्बत   = रिश्ता    




Thursday, May 28, 2015


बूँद थी नायाब आब की,  वो चम - चम चमकती !
ताब थी पात पर आब की, वो दम - दम  दमकती !!
मंद पवन की आई हिलोर लगी डोलने यूँ   ,,,,,,,,
बूझ तो पहेली आब की ,  हूँ गम - गम गमकती !

Tuesday, May 26, 2015

असीम विश्वव्यक्तित्व 


मानव तू ऐसी सभ्यता का अग्रणी हो ;
जिसके हाथ किसी के खून से न खुनी हो ! 
गौरवान्वित तू हर धर्म से कि ईश्वर है , ,, 
दिल में स्थान और बाहों का बाहुबली हो !! 

तू कृष्ण बन के आ,   या तू ईसा हो ; 
देश काल न कोई सीमा,   न दिशा हो ! 
विकास का तू अनंत प्रकाश बन कर , ,,
असीम हो तू ईश्वर के सरीसा हो !!  

निरीश्वरवादी जैन,         वाणी न बैचैन हो ;  
वस्त्र बना दिशाओं का,   अमृत भरे नैन हो ! 
केंद्रीय सत्य है,    मनुष्य में ईश्वरत्व बन , ,, 
धर्म ऐसा रौशनी समान और मीठे बैन हो  !!

मूर्ति रूप को प्रणत हो,  या प्रकाश का रूप हो ;  
ये अगियारी हो आग की या सूरज की धूप हो ! 
कहीं न रुक तू, प्रार्थना साधना साक्षात्कार से , ,,  
अग्नि तारा चन्द्र सूर्य,   ईश्वर का ही रूप हो !!  

मंदिर अगियारी या तू मस्जिद को जाता हो ;
जान ले व्यवहार तेरा हर इंसान को भाता हो !
धर्म आतंरिक प्रतीक हो या बाहय प्रतीक हो , ,,
शमा जला प्यार से रास्ता दिल को जाता हो !!

एक ज्योति, रंग अलग, धागा एक, मनके अलग हो ;
वो एक है!! नाम कई ,  नाम !! हर जन के अलग हो !  
सत्य अहिंसा की राह,  हर धर्म की राह है , ,, 
जान लेना ये जान कैसे ?? हर तन से विलग हो !!




???

लो ''भैरवी'' रोई ''भूप'' न छोड़ा;
धर्म का क्यों-- कोई रूप न छोड़ा ?

हिन्दू जागे  !! मुस्लिम जागे  !!
सिक्ख जागे  !! ईसाई जागे  !!
जाग मानव असुर बन गए, ,,,
सुर को खो बे- सुर बन गए.…  
मानव का क्यों स्वरूप न छोड़ा ?
लो ''भैरवी'' रोई ''भूप'' न छोड़ा;

नदी नीर है --- सागर भरा है;
सावन भादों --- नीर झरा है!
नीर के कितने घोल बन गए, ,,,
कड़वे  मीठे बोल  बन गए  
नीर का क्यों स्वरुप न छोड़ा ?
लो ''भैरवी'' रोई ''भूप'' न छोड़ा; .......

धर्म में क्यों--- बेजुबान मरे;
धर्म में क्यों ---ये जुबान डरे!
बदली के अश्क खुश्क हो गए,  ,,
गरजते गरजते  इश्क रो गए 
हवा में धुँआ क्यों धूप न छोडा ?
 लो ''भैरवी'' रोई ''भूप'' न छोड़ा;,,,,,,,,

प्रेम की ---- आवृति खो गयी;
विष बुझे --- बाण चुभो गयी !
मन आहत हो दग्ध हो गए , ,,,
बन चाहत विदग्ध हो गए  
बुझाने को क्यों कूप न छोड़ा ?
लो ''भैरवी'' रोई ''भूप'' न छोड़ा;....

हाथ जोड़ हम आसमां निहारे ;
गुल मुरझाये   बागबां निखारे! 
बिना खिले गुल सुप्त हो गए 
विध्वंस पर ही मुग्ध हो गए, ,,
मस्जिद शिवाला स्तूप न छोड़ा ?

लो ''भैरवी'' रोई ''भूप'' न छोड़ा;
धर्म का क्यों कोई रूप न छोड़ा ?







  

Sunday, May 24, 2015

 समय कटा,
 अपने आप !
''विषय'' है,
 लहराता साँप !  
 घिस कर घुन,
 ''पूर्णमिदं''!!
 आदि ही इति, 
 इदं इदं !!
 हृदय  को, 
 मुसकान पाटती !
 सूरत को ,
 आँखें निहारती !
 हथेली,
 सूरज की उम्मीद! 
 चल राही,
 धरा पुकारती !!
 वलय  खींच
 मलय न बाँध 
 संयम की 
 सीमा न लांघ 
 मन ही है, 
 वह परकार !
 मन से बंध ,
 मन न रांध !! 

Saturday, May 23, 2015

जब तक श्वास है जीव में , देह दमकती है 
जब ये गमकती है तो ,      देह चमकती है 
श्वास बिना चमड़ी ना यह देह ही कुछ रही 
जब तक श्वास है जीव में ,  देह महकती है 

त्याग 


छोड़ घर संसार !!!
निस्वार्थ
 तन सुखाये 
मन जलाये, 
चाह किसी 
जीवन के  लिए 
सुख की कामना !!!
हो  निर्जल 
कई कई दिन
 भूखे बैठे 
ले मरण , ,, 


कामना-तरु के 
नीचे ,
वास करने वालों !!!
तुम त्याग की, 
महिमा को कैसे जानोगे ?
न देता कवच कुण्डल ;
कर्ण के दान की 
महिमा के
कौन  गाता गीत ?
उस अद्वितीय
असाधारण, 
के करण , ,,


आज फिर !!
तुम,
तन दधीचि से 
आगे क्यों नहीं आते ?
देने ?
त्याग और संयम 
की अस्थियाँ !!!
के फिर जल जाएँ  
वृत्रासुर सी वृत्तियाँ,  
और फिर टूटें
भद्दे आचरण 
के चरण , ,,


एक त्याग !!!
अपने लिए भी 
सेवा कर ,
निस्वार्थ भाव !!
जियें और दें जीने 
बन गुलदस्ता दें ख़ुशी 
आंसू को बदल,
मुस्कुराहटों में !!
और कर 
गठजोड़ 
ले परण , ,,

अष्टावक्र गीता सन्देश !!!

किया ना किया में फँस किसके द्वंद्व हुए हैं शांत;
वेद निर्वेद में हँस के कितने मानस हुए हैं क्लांत ?
त्यागपरायण उदासीन होकर ही जीवन जीना  , ,, 
बन कर मानस का हंस सबके मन हुए है विश्रांत  …।  






त्याग 

कोई झौंका हवा का, किसी के त्याग की कहानी सुनाए, तो सुन लेना ;
असुर हारे, अस्थि के वज्र से, दधीचि की कहानी सुनाए,तो सुन लेना , 
बेटे का देकर के बलिदान अपने, अमर हो गयी ''माँ पन्ना धाय'' !!! 
कल्याण संसार का, भावना त्याग की कहानी सुनाए, तो सुन लेना, …  
पूरी करता ऊपर वाला   ख़्वाबों की तावीर 
रंग खिलेंगे मीत मिलेंगे पूरी होगी तस्वीर 

Thursday, May 21, 2015

''याद'' कुछ अशआर 


यादों की रुत में,  पता न आन - बान का मिले ;
कहाँ वो ? शब - ओ - सहर पता न जहान का मिले !

याद !!! जो दिल को, दिल से निकाल ले जायेगी ;
जिंदगी तब न मरहला, कोई आराम का मिले !

कुछ यादें गले मिलेंगी यूँ, और लिपटा ले जाएँगी !
भूल जाओगे सफर का निशाँ  वो मुकाम का मिले !!

यादों की गोद ईमान ओ सकूँ से है भरी हुई ; 
खोया रहूँगा शब भर पता न थकान का मिले ! 

चाँद का डोला है !!! और सितारों के हैं पैरहन ;
जुगनू को भूल गया हूँ, दिल उड़ान का मिले !!

अशआर में खोजो वज्न में यादों के ख्वाब हैं ;
''तनु '' उड़ चला है तीर पता न कमान का मिले !!!....'' तनु ''



Wednesday, May 20, 2015

फिर न कहना याद आये और आँसू न आये ;
हाँ जेहनी सहूलियत याद और आँसू न आये! 

हसरत न थी तेरी जानिब रंज ही पाया मैंने !
मेरे मुकद्दम में तू था ? और आँसू  न आये, ,, 

न खुद को जान पाया न जमाने को ही जाना ; 
मुहब्बत थी तेरी याद थी, और आँसू न आये !

शाम उदास है, बेकल है दरिया, और तनहा हूँ ; 
चाहती हूँ जी भर के रोना, और आँसू  न आये !! 

Monday, May 18, 2015

याद

 सुन !!
 चल न !आज 
 फिर किसी याद के घर चलें !!
 दिन आया !!
 दिन बाद
 फिर किसी याद के घर चलें !!

दिल मेरा चाहता ही न था , के कोई सुकून से बैठे; 
रह रह के सताती थी तेरी याद!!! के ! याद के घर चलें !

उम्र की थकन अब सुनाने लगीं कहानियाँ कई ?
जिस्म से हो बे-नियाज़, किसी याद के घर चलें !

जिंदगी  बे- हदफ़ बीती, ये जानकर मामूर था;              
बे- निशान हैं , कोई न !!! किसी याद के घर चलें !

दीदावर चले, कद्दावर चले ,राख उम्र की छोड़ कर;
इससे आगे धुँआ है, कौन ?? किस याद के घर चले ?

दिल को चाहिए न रखे कोई तमन्ना की हवस !
''तनु '' भूल कबाहत को, मीठी याद के घर चलें !!


 बे -नियाज़=बिना चाहत,   बे- हदफ़ = लक्ष्यहीन,  मामूर=पता था, बे -निशान=जिसका निशान न हो  कबाहत=दोष 
                                     



कपोल लाल
कहती मुस्कुरा लो
कोमल कली 
प्रदूषण की मार जल जीवन से अमृत धो गयी ;
आज  की बहार कल के जीवन से अमृत धो गयी ! 
स्वच्छ हवा स्वच्छ जल को तरसते हैं हम जीव ;  
हरित धरा कलुषित हो जीवन से अमृत धो गयी !!

अमिय बरसाते अभ्र को, निखार लेता हूँ ;
मैं फूलों की खुशबू को,     निहार लेता हूँ !  
धर नहीं धरा पर हूँ धारा से दूर नहीं, ,,, 
पल्लव चुरा नीहार को.     निहार लेता हूँ !

Sunday, May 17, 2015

फूल 


मिटटी से मैं गढ़ दूँ फूल ; 
तुझे आ मैं खिला दूँ फूल  !! 

लो फूल पर भौंरा बिठा दूँ ;
तुम कहो तितली उड़ा दूँ !
आसपास गुलशन लगा दूँ ;
किरणें डालूँ इसे हँसा दूँ ! 
डाली झूलना झूलता फूल ! 
तुझे अंक में भर लूँ फूल !!.....  मिटटी से 

मुरझाने की बात न जाने ;
स्वार्थमय संसार न जाने !
पवन का झौंका क्या होता है ?
उसकी तो ये घात न जाने , ,, 
हृदय सबके भाता फूल ! 
पंख पंखुड़ी खिलता फूल !!… मिटटी से 

लाल रंग दूँ लाल बन जाए ; 
चाहो तो गुलाब बन जाए !
चाहे कमल बन इठलाये !
नहीं कभी ये मुरझाये !! 
सबके मन हर्षाता फूल ! 
रंग बिरंगा प्यारा फूल !!... मिटटी से 

कलियाँ टूटी कोई न रोया ! 
फूल रौंदा कोई न रोया !! 
ये माटी का है मृण्मय है! 
टूटा तो मेरा नन्हा रोया !!
''पानी देना'' माँ गयी भूल !
कैसे अब ये हँसेगा फूल ?…  मिटटी से 






प्रश्न (कोठा)


न बंधन भाँवरों का ,
ना चेहरे, 
सेहरा सजता है ?
न गाये सोहर कोई ?
ना पालने,
नन्हा सोता है !
सब होता है ,
वहाँ भी यहाँ की तरह ही ,
बस एक ही है ,
झीना सा ,
ओटा ?


अकारण ही ,
सवाल , फिर
सवालों पर सवाल ?
जब उठते जाते हैं
अपने होने का,
अस्तित्व भी
हम भूल ही जाते हैं ?
और नकार जाते हैं ,
जीवन के मूल्यों को ,
क्यों करते है ,
ओता ?


मन की आँखों की,
परिवार की
समाज की
अनैतिक इच्छाएँ,
पूरी करने तोड़
मापदंड मर्यादाएँ ,
इंसानियत
भूलकर लिहाज, 
शर्म जान कर 
कि डूबेंगे लगाने ,
गोता ?


उगे कई ?
कुकुरमुत्तों की तरह
राजनितिक सामाजिक 
आर्थिक लाभ
से सने
चढ़ा किसी को सूली
किसी को दे दंश 
सब जानते
किसकी करनी पर 
है अनबोला
बोले न कोई 
कौथा ?


विगलित तन !
विचलित मन!!
ढूंढे ठौर छाँव , ,,
आँगन बाबुल का ,
अमराई की कोयल , ,,
पकड़ा गया झूठ,  ,,
झूठ के आँगन 
सत्य गया  रूठ, ,, 
और फिर 
अलहदा से
साज पर रो रहा 
कोठा !!!


















Saturday, May 16, 2015

 पीयूष घट छलका था,  जब रास रचाया कान्हा ने;
 रोमांचित  तरंगिणी ,   जब रास रचाया कान्हा ने !
 कान्हा गोपी गोपी कान्हा सत्य शिव सुन्दर रहा,  , ,,
 अक्षय वट छाया रहा,   जब रास रचाया कान्हा ने !!

Thursday, May 14, 2015

बद अख़लाक़ 

बिगाड़ी तुमने नेमतें,   फिर शोर किसलिए ?   
उजाड़ी तुमने अराइशें,  फिर शोर किसलिए ?  

रोज़ फैलती है पर्वतोँ पर,----   धूप की चादर !  
बिखेरी तुमने कालिखें,  फिर शोर किसलिए ?

एहले चमन न छोड़ा अब कौम हो उजाड़ते !  
कुचले तुमने इंसान,   फिर शोर किसलिए ?

मर्दों के लिए औरतें ,   औरतों के लिए मर्द!    
खेलते ले खिलौने सा, फिर शोर किसलिए ? 

ऊँटों पे लादे मासूम, --चकलों पे ख़वातीन! 
कितने बनाए मनु बम, फिर शोर किसलिए ?

कोठे पर चल के जाना,     ईमान बेच देना ! 
हर इल्ज़ाम दूसरे सर, फिर शोर किसलिए ?

नेमतों को नवाजिये ,---   सजाइये ज़मीर को !
कुदरत को जला जला दिया, फिर शोर किसलिए ?

हर बुराई हमारी है, ----- हर दोष हमारा है ! 
बुराई को करें तमाम, फिर शोर किसलिए ?



  

Tuesday, May 12, 2015

शम्पा जलद
दीपक बाती साथ
जीवन रेखा


 मेघ शिक्षक 
 धरिणी पाठशाला
 दादुर शिष्य 


 चपला सखी
  बादल संग नाचे
  मृदंग बाजे  


 बूँद सौगात
 इंद्र धनुषी तुला
 बादल बाट 
बाट = scruple


पड़े फुहार
मन बदरा संग
बजे मृदंग ,,,


मुकुट धरे
धरणी राजरानी
साम्राज्य वारि,,  ,''तनु ''


या खुदा रहम 



खुशबू है हवाओं में, --  या आँधी की कहर है ;
रुखसत ''वो''हो रहा उसके हाथों की लहर है !

जब सोच ले गर ''वो''अब इंतज़ार क्यों करूँ ;
तबाह करने , पास उसके आठों ही पहर हैं !

सहरा है, मंज़िल दूर है और मरहले हैं कई ;
हवा में  उन्माद, ये उड़ते गुबार की ठहर है !

 जान क्या है? ना जान पाया जान मैं अंजान; 
 गूढ़ है,      ''वो''अनसुलझे  गाँठों की गहर है !

इस तस्वीर में ''वो ''तस्वीर के बाहर भी ''वो ''
मिटा रहा जहान , उसके इशारों की सहर है !







माँ शारदे से प्रदत्त दृष्टि ''सौंदर्य दृष्टि'' है ; 
दिनकर  के सफ़ेद रंग से उपजी ये ''सृष्टि'' है !
जीव जीव में संस्कार से बना है  ''उत्तम व्यवहार'', ,,
कहीं फूल तो कहीं हैं काँटे ये उसकी ''वृष्टि'' है !! 




Monday, May 11, 2015

इक  दर्द सा ---  साल गया
दिल तेज़ाब --- उबाल गया
फफोलों  में ऑंख न रोयेगी
गम दे गया मौत टाल गया 



बिखर के रह गए वो ''तेरी दोस्ती'' कमाल के वो दिन;

उलझे रहते थे खुद ही में, खद्द-ओ-खाल के वो दिन!

न तू पढ़ता था न मैं, गुजारते थे वो मस्ती भरी राते; 

मकतब भी खोया, उम्र भी खोयी, उस साल के वो दिन! 

किस्म किस्म के पकवानों से, सजा हुआ है दस्तरखान; 

माँ के हाथ का ''आम का अचार'', रोटी दाल के वो दिन!

अब उसी गुलशन में, उसी तरह क्यों गुल खिलते नहीं ?

बीते जनम न कोई पूछता,  ''हाल ओ चाल'' के वो दिन!!!  






Sunday, May 10, 2015




दोस्ती में तेरी----- मैं नादान बन गया 
मैं मानता हूँ ------ मैं इंसान बन गया 

हश्र में    ---  निगाह तेरी तरफ ही थी
जान-बूझकर क्यों तू अनजान बन गया   

देखा किये हमीं को    हँसते रहे हमीं पर 
क्यों सोचते थे सब ?  तू इंसान बन गया 

सोचता यूँ झुक कर    तू दस्त थाम लेगा
मुँह क्यों फेरा तूने तेरा अरमान बन गया

धीरे धीरे लिए जाता हूँ मैं कश्ती कनारे पे 
साहिल तुझे समझा था तू तूफ़ान बन गया , ,,.... ''तनु ''

           








संग राम रखवालो,   कहाणी राम री न्यारी ;
रंग भरे उ फूलां में,    सजावै नेह री क्यारी !
क्यों रोवै थारां नयणा,     जद राम राखै है ;
जग रो भरसो झूठो,   भरोसो राम रो भारी !!

Saturday, May 9, 2015

प्रेम 

कैसा प्रेम तुम्हारा ऐसा ?
कि है, ,,, 
मेरे मन का कोना रीता ! 

निश्चल निर्मल झरने बहते ;
नदिया कूल   बतियाँ कहते !
देख फुनगी पर पुष्प नया !
भौंरा मस्त कर अठखेलियां !! 
प्रेम!!! पुष्प और भौरे जैसा , ,,,
करते क्या तुम मुझसे ऐसा ?
फिर ?
 क्यों पल कलप सम बीता ?
क्यों है  मन का कोना रीता ?
… कैसा 

नयनों की ज्योति तुमसे है ;
अधरों की बानी तुमसे है !
लो कोयल की कुहुक सुनों तुम !
कितनी मेरी प्रीत गुणों तुम !!
प्रेम!!! चाँद चकोर के जैसा,  ,,,, 
करते क्या तुम मुझसे ऐसा ?
कहो ?
बूँद  बूँद   वो  मधुरस पीता ?
क्यों है ?  मेरे मन का कोना रीता ?
  …कैसा  

चमक शंपा  की बनी गुहार :
पड़े बारिश की भीनी फुहार! 
पपीहा पीहू पीहू पीहू बुलाये !
मोर नाचे नाच घन बुलाये !!
प्रेम!!! घन चातक के जैसा , ,,,
करते क्या तुम मुझसे ऐसा ?
बोलो ?
बातें कभी न हो अब संजीदा ?
हो न मेरे मन का कोना रीता ?
 .... कैसा 










Thursday, May 7, 2015

कवि 

दर्द ,आँसू, फूल, प्रीत, अंगार, प्रात, सांध्य से---- कवि के दिनमान हैं !
भक्ति, श्रृंगार, रौद्र, वात्सल्य, करुण, हास्य, --- वीर कवि के गान हैं !!
कवि घटक ले, घट में समा, घट घट उंडेले ---- ये कविता की खान हैं !
देश-दुनिया, हम-तुम, आज-कल, दिन-रात  निष्प्राण को देते प्राण हैं !!


 वे कल के ''सुकवि'' सूरज से चमके -दमके जैसे चमक ''भानु ''भान हैं !
रचनाएँ बोधगम्य, रससिक्त, प्रवाह युक्त,  ------ लालित्य लिए बाण हैं !!
''आदि कवि'' ''कोकिला'' कोई ''कवि गुरु'' कोई ''निराला'' देश की शान है !
कोई ''पंत,''   ''संत'' दे सीख कोई ''राष्ट्र कवि'',------  देश का अभिमान है !!


मीरा ,रहीम, तुलसी, कबीर, कृष्ण भक्ति में डूब रहे ------   रसखान है !
जगा इंकलाबी आफताब ''महताब'' बन फलक सज रहे ---  इकबाल हैं !!
आज के साहित्य चोर चोरी कर रचनाओं की हो रहे ---------- बदनाम है !
 ऐसा ? क्या पा गए ऐसा ? खो इंसानियत ------------   कैसे ये इंसान हैं!!





राम की क्यारी
सुख दुःख के फूल
जीवन बारी … ''तनु ''

Wednesday, May 6, 2015


एक सुन्दर दिल !
अनघड़ घड़ सहारे से,
संस्कार के, समय के,
थपेड़ों से संवर निखर।
उज्जवल मज़बूत,
सबके मुक़ाबिल, ,,
शिक्षा देता समाज को,
बन गया गीता !!

एक सुकोमल दिल!
मासूम ! सहारे से ,
संस्कार के, समय के,
थपेड़ों से चोट खा टूट ?
बिखर कोमल, ,,
सबके मुक़ाबिल,
कमज़ोर था रोकर?
बना घट रीता ??

एक सुकुमार दिल !
पगडण्डियों पर चल,
बन राम की छाया,
 दुरूह जीवन, ,,
थपेड़ों से कहाँ संवरी ?
तब भी कमज़ोर,
अब भी कमज़ोर ?
बेटी जनक की ?
रहती राम घट सीता ??

एक दिल ?
नफरत औ प्यार के काबिल ?
मोम सा नरम वज्र सा कठोर ?
झरने सा बहता स्थिर ताल सा, ,,,,
समय बन भागता सा ?
ठहर साँस में ,
मौत के पैगाम,
लिए निशब्द ?
सबके घट बीता ????????









Monday, May 4, 2015

बुद्धम शरणम गच्छामि 

दिन चाहे ----कितने भी बीते ;
बुद्ध आज भी दिलों में जीते !
जहाँ  बहता करुणा का सागर,
वहाँ वात्सल्य घट क्यों कर रीते ? 

तम को जीता क्रोध को जीता ;
संयम मन में ----रहा अनूठा ,
सर्वस्व छोड़  त्याग में जीना , 
ऐसे किसका जीवन बीता ?

जीव का त्रास -- देख न पाये ;
मृत्यु का दंश--  देख न पाये, 
मोह छोड़ विषम पथ चुना, 
ऐसे महात्मा बुद्ध कहलाये !!

बुद्ध निर्मोही बुद्ध हैं त्यागी ;
भारत देश अतीव बड़भागी ,
मानव बन छोड़ मद मत्सर ?
पहन वल्कल बन वीतरागी !

ज्ञान का पथ है सदैव दुर्गम ;
कौन जाना है आगम निर्गम ?
शान्तं पापं-------छोड़ अहम।
ऐसे पथ को -----बना सुगम , ,,

बुद्ध ज्ञानमय --- बुद्ध त्यागमय 
बुद्ध संयमी ---  बुद्ध वैराग्यमय 
सिर्फ आज न ---- तप और संयम 
सदा ज्ञानमय ---   सदा तेजोमय 






















अज्ञ था 
विज्ञ नहीं 
पकड़ा गया झूठ,  ,,
झूठ 
के आँगन 
सत्य गया  रूठ, ,, 
और फिर 
अलहदा से
साज पर 
रो रहा मूसा !!


Sunday, May 3, 2015


मौत थी
जीवन नहीं 
पकड़ा गया झूठ,  ,,
झूठ 
के आँगन 
सत्य गया  रूठ, ,, 
अलहदा से
साज पर 
गा रहा मूसा !!

Saturday, May 2, 2015





  संग राम रखवाला,    कहानी राम की न्यारी    
  रंग भरे वो फूलों ,     में सजा नेह की क्यारी     
  ना अश्रुपूरित हो,   नयन जब राम से साजन                   
  जग का भरोसा झूठा,    भरोसा राम का भारी  

टूटे यकीं से जिंदगी, एक बोझ लगती है
करले दुआ ये बंदगी,  एक रोज़ सजती है 
ये जान हर पथ में वो तेरे साथ चलता है 
बिना उसके ये जिंदगी, एक सोज़ लगती है           


शबरी का भरोसा प्रबल,    कि राम आएँगे  
अहिल्या की तपस्या रही, कि राम आएँगे
लगाऊँ उसको पार जो भव पार करते हैं 
खिवैया बन राम ही रटूँ,    कि राम आएँगे


भरोसा है तो उस भरोसे को,        निभाना भी ज़रूरी है १४ 
वादा है कोई उस वादे को,           निभाना भी ज़रूरी है 
हैं सारे इंसान देखने में तो दिखते एक ही जैसे ?
अपना गर जो मान लिया उसको, निभाना भी ज़रूरी है












Friday, May 1, 2015

डार टंगी  हैं 
कलियाँ चमन की 
कोई न माली 

कपोल लाल
कहती मुस्कुरा लो
कोमल कली 

रंग उतरा 
खुशबू  खोने लगी 
निष्ठुर भानु 

इश्क में गुंचा
कली बन निखरा 
आया वसंत

मुरझा गयी
कलियाँ बिन जल  
बागबाँ नहीं 


सबके श्रम का
सन्मान करें हम 
उसमें ईमान भरें हम 
उन दो हाथों को ?
करें मजबूत,
लिखें भरपूर ,
भावों के लड्डू  
शब्दों के बूर
हम. … 
कलम के मजदूर,,,,
श्रम साध्य बन 
मन और दो आँखों को 
रखें लक्ष्य 
करें मजबूत
भव भावना भाव ?
बढ़ाए नूर, 
हम.... 
कलम के मजदूर
मूल को सरें  
रिसें न ज़ख़्म ,
 कलम के  
मुमकिन नामुमकिन ?
जज़्बातों के दरिया में
डूब न जाएँ 
हो मजबूर 
हम 
कलम के मजदूर 
मोल सत्य का ,
मोल धर्म का, 
श्लोक की तरह 
कंठस्थ 
मस्तिष्क में
ज्वर आक्रोश
न हो गरूर ?
हम … 
कलम के मजदूर। ………