असीम विश्वव्यक्तित्व
मानव तू ऐसी सभ्यता का अग्रणी हो ;
जिसके हाथ किसी के खून से न खुनी हो !
गौरवान्वित तू हर धर्म से कि ईश्वर है , ,,
दिल में स्थान और बाहों का बाहुबली हो !!
तू कृष्ण बन के आ, या तू ईसा हो ;
देश काल न कोई सीमा, न दिशा हो !
विकास का तू अनंत प्रकाश बन कर , ,,
असीम हो तू ईश्वर के सरीसा हो !!
निरीश्वरवादी जैन, वाणी न बैचैन हो ;
वस्त्र बना दिशाओं का, अमृत भरे नैन हो !
केंद्रीय सत्य है, मनुष्य में ईश्वरत्व बन , ,,
धर्म ऐसा रौशनी समान और मीठे बैन हो !!
मूर्ति रूप को प्रणत हो, या प्रकाश का रूप हो ;
ये अगियारी हो आग की या सूरज की धूप हो !
कहीं न रुक तू, प्रार्थना साधना साक्षात्कार से , ,,
अग्नि तारा चन्द्र सूर्य, ईश्वर का ही रूप हो !!
मंदिर अगियारी या तू मस्जिद को जाता हो ;
जान ले व्यवहार तेरा हर इंसान को भाता हो !
धर्म आतंरिक प्रतीक हो या बाहय प्रतीक हो , ,,
शमा जला प्यार से रास्ता दिल को जाता हो !!
एक ज्योति, रंग अलग, धागा एक, मनके अलग हो ;
वो एक है!! नाम कई , नाम !! हर जन के अलग हो !
सत्य अहिंसा की राह, हर धर्म की राह है , ,,
जान लेना ये जान कैसे ?? हर तन से विलग हो !!