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Saturday, May 9, 2015

प्रेम 

कैसा प्रेम तुम्हारा ऐसा ?
कि है, ,,, 
मेरे मन का कोना रीता ! 

निश्चल निर्मल झरने बहते ;
नदिया कूल   बतियाँ कहते !
देख फुनगी पर पुष्प नया !
भौंरा मस्त कर अठखेलियां !! 
प्रेम!!! पुष्प और भौरे जैसा , ,,,
करते क्या तुम मुझसे ऐसा ?
फिर ?
 क्यों पल कलप सम बीता ?
क्यों है  मन का कोना रीता ?
… कैसा 

नयनों की ज्योति तुमसे है ;
अधरों की बानी तुमसे है !
लो कोयल की कुहुक सुनों तुम !
कितनी मेरी प्रीत गुणों तुम !!
प्रेम!!! चाँद चकोर के जैसा,  ,,,, 
करते क्या तुम मुझसे ऐसा ?
कहो ?
बूँद  बूँद   वो  मधुरस पीता ?
क्यों है ?  मेरे मन का कोना रीता ?
  …कैसा  

चमक शंपा  की बनी गुहार :
पड़े बारिश की भीनी फुहार! 
पपीहा पीहू पीहू पीहू बुलाये !
मोर नाचे नाच घन बुलाये !!
प्रेम!!! घन चातक के जैसा , ,,,
करते क्या तुम मुझसे ऐसा ?
बोलो ?
बातें कभी न हो अब संजीदा ?
हो न मेरे मन का कोना रीता ?
 .... कैसा 










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