प्रेम
कैसा प्रेम तुम्हारा ऐसा ?
कि है, ,,,
मेरे मन का कोना रीता !
निश्चल निर्मल झरने बहते ;
नदिया कूल बतियाँ कहते !
देख फुनगी पर पुष्प नया !
भौंरा मस्त कर अठखेलियां !!
प्रेम!!! पुष्प और भौरे जैसा , ,,,
करते क्या तुम मुझसे ऐसा ?
फिर ?
क्यों पल कलप सम बीता ?
क्यों है मन का कोना रीता ?
… कैसा
नयनों की ज्योति तुमसे है ;
अधरों की बानी तुमसे है !
लो कोयल की कुहुक सुनों तुम !
कितनी मेरी प्रीत गुणों तुम !!
प्रेम!!! चाँद चकोर के जैसा, ,,,,
करते क्या तुम मुझसे ऐसा ?
कहो ?
बूँद बूँद वो मधुरस पीता ?
क्यों है ? मेरे मन का कोना रीता ?
…कैसा
चमक शंपा की बनी गुहार :
पड़े बारिश की भीनी फुहार!
पपीहा पीहू पीहू पीहू बुलाये !
मोर नाचे नाच घन बुलाये !!
प्रेम!!! घन चातक के जैसा , ,,,
करते क्या तुम मुझसे ऐसा ?
बोलो ?
बातें कभी न हो अब संजीदा ?
हो न मेरे मन का कोना रीता ?
.... कैसा
कैसा प्रेम तुम्हारा ऐसा ?
कि है, ,,,
मेरे मन का कोना रीता !
निश्चल निर्मल झरने बहते ;
नदिया कूल बतियाँ कहते !
देख फुनगी पर पुष्प नया !
भौंरा मस्त कर अठखेलियां !!
प्रेम!!! पुष्प और भौरे जैसा , ,,,
करते क्या तुम मुझसे ऐसा ?
फिर ?
क्यों पल कलप सम बीता ?
क्यों है मन का कोना रीता ?
… कैसा
नयनों की ज्योति तुमसे है ;
अधरों की बानी तुमसे है !
लो कोयल की कुहुक सुनों तुम !
कितनी मेरी प्रीत गुणों तुम !!
प्रेम!!! चाँद चकोर के जैसा, ,,,,
करते क्या तुम मुझसे ऐसा ?
कहो ?
बूँद बूँद वो मधुरस पीता ?
क्यों है ? मेरे मन का कोना रीता ?
…कैसा
चमक शंपा की बनी गुहार :
पड़े बारिश की भीनी फुहार!
पपीहा पीहू पीहू पीहू बुलाये !
मोर नाचे नाच घन बुलाये !!
प्रेम!!! घन चातक के जैसा , ,,,
करते क्या तुम मुझसे ऐसा ?
बोलो ?
बातें कभी न हो अब संजीदा ?
हो न मेरे मन का कोना रीता ?
.... कैसा
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