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Monday, May 18, 2015

याद

 सुन !!
 चल न !आज 
 फिर किसी याद के घर चलें !!
 दिन आया !!
 दिन बाद
 फिर किसी याद के घर चलें !!

दिल मेरा चाहता ही न था , के कोई सुकून से बैठे; 
रह रह के सताती थी तेरी याद!!! के ! याद के घर चलें !

उम्र की थकन अब सुनाने लगीं कहानियाँ कई ?
जिस्म से हो बे-नियाज़, किसी याद के घर चलें !

जिंदगी  बे- हदफ़ बीती, ये जानकर मामूर था;              
बे- निशान हैं , कोई न !!! किसी याद के घर चलें !

दीदावर चले, कद्दावर चले ,राख उम्र की छोड़ कर;
इससे आगे धुँआ है, कौन ?? किस याद के घर चले ?

दिल को चाहिए न रखे कोई तमन्ना की हवस !
''तनु '' भूल कबाहत को, मीठी याद के घर चलें !!


 बे -नियाज़=बिना चाहत,   बे- हदफ़ = लक्ष्यहीन,  मामूर=पता था, बे -निशान=जिसका निशान न हो  कबाहत=दोष 
                                     



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