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Monday, May 18, 2015

अमिय बरसाते अभ्र को, निखार लेता हूँ ;
मैं फूलों की खुशबू को,     निहार लेता हूँ !  
धर नहीं धरा पर हूँ धारा से दूर नहीं, ,,, 
पल्लव चुरा नीहार को.     निहार लेता हूँ !

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