Labels

Friday, May 1, 2015

सबके श्रम का
सन्मान करें हम 
उसमें ईमान भरें हम 
उन दो हाथों को ?
करें मजबूत,
लिखें भरपूर ,
भावों के लड्डू  
शब्दों के बूर
हम. … 
कलम के मजदूर,,,,
श्रम साध्य बन 
मन और दो आँखों को 
रखें लक्ष्य 
करें मजबूत
भव भावना भाव ?
बढ़ाए नूर, 
हम.... 
कलम के मजदूर
मूल को सरें  
रिसें न ज़ख़्म ,
 कलम के  
मुमकिन नामुमकिन ?
जज़्बातों के दरिया में
डूब न जाएँ 
हो मजबूर 
हम 
कलम के मजदूर 
मोल सत्य का ,
मोल धर्म का, 
श्लोक की तरह 
कंठस्थ 
मस्तिष्क में
ज्वर आक्रोश
न हो गरूर ?
हम … 
कलम के मजदूर। ………









No comments:

Post a Comment