त्याग
छोड़ घर संसार !!!
निस्वार्थ
तन सुखाये
मन जलाये,
चाह किसी
जीवन के लिए
सुख की कामना !!!
हो निर्जल
कई कई दिन
भूखे बैठे
ले मरण , ,,
कामना-तरु के
नीचे ,
वास करने वालों !!!
तुम त्याग की,
महिमा को कैसे जानोगे ?
न देता कवच कुण्डल ;
कर्ण के दान की
महिमा के
कौन गाता गीत ?
उस अद्वितीय
असाधारण,
के करण , ,,
आज फिर !!
तुम,
तन दधीचि से
आगे क्यों नहीं आते ?
देने ?
त्याग और संयम
की अस्थियाँ !!!
के फिर जल जाएँ
वृत्रासुर सी वृत्तियाँ,
और फिर टूटें
भद्दे आचरण
के चरण , ,,
एक त्याग !!!
अपने लिए भी
सेवा कर ,
निस्वार्थ भाव !!
जियें और दें जीने
बन गुलदस्ता दें ख़ुशी
आंसू को बदल,
मुस्कुराहटों में !!
और कर
गठजोड़
ले परण , ,,
छोड़ घर संसार !!!
निस्वार्थ
तन सुखाये
मन जलाये,
चाह किसी
जीवन के लिए
सुख की कामना !!!
हो निर्जल
कई कई दिन
भूखे बैठे
ले मरण , ,,
कामना-तरु के
नीचे ,
वास करने वालों !!!
तुम त्याग की,
महिमा को कैसे जानोगे ?
न देता कवच कुण्डल ;
कर्ण के दान की
महिमा के
कौन गाता गीत ?
उस अद्वितीय
असाधारण,
के करण , ,,
आज फिर !!
तुम,
तन दधीचि से
आगे क्यों नहीं आते ?
देने ?
त्याग और संयम
की अस्थियाँ !!!
के फिर जल जाएँ
वृत्रासुर सी वृत्तियाँ,
और फिर टूटें
भद्दे आचरण
के चरण , ,,
एक त्याग !!!
अपने लिए भी
सेवा कर ,
निस्वार्थ भाव !!
जियें और दें जीने
बन गुलदस्ता दें ख़ुशी
आंसू को बदल,
मुस्कुराहटों में !!
और कर
गठजोड़
ले परण , ,,
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