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Saturday, May 23, 2015

त्याग 


छोड़ घर संसार !!!
निस्वार्थ
 तन सुखाये 
मन जलाये, 
चाह किसी 
जीवन के  लिए 
सुख की कामना !!!
हो  निर्जल 
कई कई दिन
 भूखे बैठे 
ले मरण , ,, 


कामना-तरु के 
नीचे ,
वास करने वालों !!!
तुम त्याग की, 
महिमा को कैसे जानोगे ?
न देता कवच कुण्डल ;
कर्ण के दान की 
महिमा के
कौन  गाता गीत ?
उस अद्वितीय
असाधारण, 
के करण , ,,


आज फिर !!
तुम,
तन दधीचि से 
आगे क्यों नहीं आते ?
देने ?
त्याग और संयम 
की अस्थियाँ !!!
के फिर जल जाएँ  
वृत्रासुर सी वृत्तियाँ,  
और फिर टूटें
भद्दे आचरण 
के चरण , ,,


एक त्याग !!!
अपने लिए भी 
सेवा कर ,
निस्वार्थ भाव !!
जियें और दें जीने 
बन गुलदस्ता दें ख़ुशी 
आंसू को बदल,
मुस्कुराहटों में !!
और कर 
गठजोड़ 
ले परण , ,,

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