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Thursday, May 14, 2015

बद अख़लाक़ 

बिगाड़ी तुमने नेमतें,   फिर शोर किसलिए ?   
उजाड़ी तुमने अराइशें,  फिर शोर किसलिए ?  

रोज़ फैलती है पर्वतोँ पर,----   धूप की चादर !  
बिखेरी तुमने कालिखें,  फिर शोर किसलिए ?

एहले चमन न छोड़ा अब कौम हो उजाड़ते !  
कुचले तुमने इंसान,   फिर शोर किसलिए ?

मर्दों के लिए औरतें ,   औरतों के लिए मर्द!    
खेलते ले खिलौने सा, फिर शोर किसलिए ? 

ऊँटों पे लादे मासूम, --चकलों पे ख़वातीन! 
कितने बनाए मनु बम, फिर शोर किसलिए ?

कोठे पर चल के जाना,     ईमान बेच देना ! 
हर इल्ज़ाम दूसरे सर, फिर शोर किसलिए ?

नेमतों को नवाजिये ,---   सजाइये ज़मीर को !
कुदरत को जला जला दिया, फिर शोर किसलिए ?

हर बुराई हमारी है, ----- हर दोष हमारा है ! 
बुराई को करें तमाम, फिर शोर किसलिए ?



  

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