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Tuesday, May 26, 2015

असीम विश्वव्यक्तित्व 


मानव तू ऐसी सभ्यता का अग्रणी हो ;
जिसके हाथ किसी के खून से न खुनी हो ! 
गौरवान्वित तू हर धर्म से कि ईश्वर है , ,, 
दिल में स्थान और बाहों का बाहुबली हो !! 

तू कृष्ण बन के आ,   या तू ईसा हो ; 
देश काल न कोई सीमा,   न दिशा हो ! 
विकास का तू अनंत प्रकाश बन कर , ,,
असीम हो तू ईश्वर के सरीसा हो !!  

निरीश्वरवादी जैन,         वाणी न बैचैन हो ;  
वस्त्र बना दिशाओं का,   अमृत भरे नैन हो ! 
केंद्रीय सत्य है,    मनुष्य में ईश्वरत्व बन , ,, 
धर्म ऐसा रौशनी समान और मीठे बैन हो  !!

मूर्ति रूप को प्रणत हो,  या प्रकाश का रूप हो ;  
ये अगियारी हो आग की या सूरज की धूप हो ! 
कहीं न रुक तू, प्रार्थना साधना साक्षात्कार से , ,,  
अग्नि तारा चन्द्र सूर्य,   ईश्वर का ही रूप हो !!  

मंदिर अगियारी या तू मस्जिद को जाता हो ;
जान ले व्यवहार तेरा हर इंसान को भाता हो !
धर्म आतंरिक प्रतीक हो या बाहय प्रतीक हो , ,,
शमा जला प्यार से रास्ता दिल को जाता हो !!

एक ज्योति, रंग अलग, धागा एक, मनके अलग हो ;
वो एक है!! नाम कई ,  नाम !! हर जन के अलग हो !  
सत्य अहिंसा की राह,  हर धर्म की राह है , ,, 
जान लेना ये जान कैसे ?? हर तन से विलग हो !!




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