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Tuesday, May 26, 2015

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लो ''भैरवी'' रोई ''भूप'' न छोड़ा;
धर्म का क्यों-- कोई रूप न छोड़ा ?

हिन्दू जागे  !! मुस्लिम जागे  !!
सिक्ख जागे  !! ईसाई जागे  !!
जाग मानव असुर बन गए, ,,,
सुर को खो बे- सुर बन गए.…  
मानव का क्यों स्वरूप न छोड़ा ?
लो ''भैरवी'' रोई ''भूप'' न छोड़ा;

नदी नीर है --- सागर भरा है;
सावन भादों --- नीर झरा है!
नीर के कितने घोल बन गए, ,,,
कड़वे  मीठे बोल  बन गए  
नीर का क्यों स्वरुप न छोड़ा ?
लो ''भैरवी'' रोई ''भूप'' न छोड़ा; .......

धर्म में क्यों--- बेजुबान मरे;
धर्म में क्यों ---ये जुबान डरे!
बदली के अश्क खुश्क हो गए,  ,,
गरजते गरजते  इश्क रो गए 
हवा में धुँआ क्यों धूप न छोडा ?
 लो ''भैरवी'' रोई ''भूप'' न छोड़ा;,,,,,,,,

प्रेम की ---- आवृति खो गयी;
विष बुझे --- बाण चुभो गयी !
मन आहत हो दग्ध हो गए , ,,,
बन चाहत विदग्ध हो गए  
बुझाने को क्यों कूप न छोड़ा ?
लो ''भैरवी'' रोई ''भूप'' न छोड़ा;....

हाथ जोड़ हम आसमां निहारे ;
गुल मुरझाये   बागबां निखारे! 
बिना खिले गुल सुप्त हो गए 
विध्वंस पर ही मुग्ध हो गए, ,,
मस्जिद शिवाला स्तूप न छोड़ा ?

लो ''भैरवी'' रोई ''भूप'' न छोड़ा;
धर्म का क्यों कोई रूप न छोड़ा ?







  

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