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लो ''भैरवी'' रोई ''भूप'' न छोड़ा;
धर्म का क्यों-- कोई रूप न छोड़ा ?
हिन्दू जागे !! मुस्लिम जागे !!
सिक्ख जागे !! ईसाई जागे !!
जाग मानव असुर बन गए, ,,,
सुर को खो बे- सुर बन गए.…
मानव का क्यों स्वरूप न छोड़ा ?
लो ''भैरवी'' रोई ''भूप'' न छोड़ा;…
नदी नीर है --- सागर भरा है;
सावन भादों --- नीर झरा है!
नीर के कितने घोल बन गए, ,,,
कड़वे मीठे बोल बन गए
नीर का क्यों स्वरुप न छोड़ा ?
लो ''भैरवी'' रोई ''भूप'' न छोड़ा; .......
धर्म में क्यों--- बेजुबान मरे;
धर्म में क्यों ---ये जुबान डरे!
बदली के अश्क खुश्क हो गए, ,,
गरजते गरजते इश्क रो गए
हवा में धुँआ क्यों धूप न छोडा ?
लो ''भैरवी'' रोई ''भूप'' न छोड़ा;,,,,,,,,
प्रेम की ---- आवृति खो गयी;
विष बुझे --- बाण चुभो गयी !
मन आहत हो दग्ध हो गए , ,,,
बन चाहत विदग्ध हो गए
बुझाने को क्यों कूप न छोड़ा ?
लो ''भैरवी'' रोई ''भूप'' न छोड़ा;....
हाथ जोड़ हम आसमां निहारे ;
गुल मुरझाये बागबां निखारे!
बिना खिले गुल सुप्त हो गए
विध्वंस पर ही मुग्ध हो गए, ,,
मस्जिद शिवाला स्तूप न छोड़ा ?
लो ''भैरवी'' रोई ''भूप'' न छोड़ा;
धर्म का क्यों कोई रूप न छोड़ा ?
लो ''भैरवी'' रोई ''भूप'' न छोड़ा;
धर्म का क्यों-- कोई रूप न छोड़ा ?
हिन्दू जागे !! मुस्लिम जागे !!
सिक्ख जागे !! ईसाई जागे !!
जाग मानव असुर बन गए, ,,,
सुर को खो बे- सुर बन गए.…
मानव का क्यों स्वरूप न छोड़ा ?
लो ''भैरवी'' रोई ''भूप'' न छोड़ा;…
नदी नीर है --- सागर भरा है;
सावन भादों --- नीर झरा है!
नीर के कितने घोल बन गए, ,,,
कड़वे मीठे बोल बन गए
नीर का क्यों स्वरुप न छोड़ा ?
लो ''भैरवी'' रोई ''भूप'' न छोड़ा; .......
धर्म में क्यों--- बेजुबान मरे;
धर्म में क्यों ---ये जुबान डरे!
बदली के अश्क खुश्क हो गए, ,,
गरजते गरजते इश्क रो गए
हवा में धुँआ क्यों धूप न छोडा ?
लो ''भैरवी'' रोई ''भूप'' न छोड़ा;,,,,,,,,
प्रेम की ---- आवृति खो गयी;
विष बुझे --- बाण चुभो गयी !
मन आहत हो दग्ध हो गए , ,,,
बन चाहत विदग्ध हो गए
बुझाने को क्यों कूप न छोड़ा ?
लो ''भैरवी'' रोई ''भूप'' न छोड़ा;....
हाथ जोड़ हम आसमां निहारे ;
गुल मुरझाये बागबां निखारे!
बिना खिले गुल सुप्त हो गए
विध्वंस पर ही मुग्ध हो गए, ,,
मस्जिद शिवाला स्तूप न छोड़ा ?
लो ''भैरवी'' रोई ''भूप'' न छोड़ा;
धर्म का क्यों कोई रूप न छोड़ा ?
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