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Saturday, May 23, 2015


अष्टावक्र गीता सन्देश !!!

किया ना किया में फँस किसके द्वंद्व हुए हैं शांत;
वेद निर्वेद में हँस के कितने मानस हुए हैं क्लांत ?
त्यागपरायण उदासीन होकर ही जीवन जीना  , ,, 
बन कर मानस का हंस सबके मन हुए है विश्रांत  …।  






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