डार टंगी हैं
कलियाँ चमन की
कोई न माली
कपोल लाल
कहती मुस्कुरा लो
कोमल कली
रंग उतरा
खुशबू खोने लगी
निष्ठुर भानु
इश्क में गुंचा
कली बन निखरा
आया वसंत
मुरझा गयी
कलियाँ बिन जल
बागबाँ नहीं
कलियाँ चमन की
कोई न माली
कपोल लाल
कहती मुस्कुरा लो
कोमल कली
रंग उतरा
खुशबू खोने लगी
निष्ठुर भानु
इश्क में गुंचा
कली बन निखरा
आया वसंत
मुरझा गयी
कलियाँ बिन जल
बागबाँ नहीं
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