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Friday, May 1, 2015

डार टंगी  हैं 
कलियाँ चमन की 
कोई न माली 

कपोल लाल
कहती मुस्कुरा लो
कोमल कली 

रंग उतरा 
खुशबू  खोने लगी 
निष्ठुर भानु 

इश्क में गुंचा
कली बन निखरा 
आया वसंत

मुरझा गयी
कलियाँ बिन जल  
बागबाँ नहीं 


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