लेखन के मंच पर ही मचाते क्यों विवाद , ,,
अज्ञानी लड़ते हैं यहाँ, ज्ञानी मन अवसाद !
ज्ञान बड़ा है बोझ से,अहंकार है नीच , ,,
आसान सुलझना इसे,क्यों उलझे हम खीज !
व्यंग्य-बाण से वार है, कह कर आदरणीय !
चिकनी चुपड़ी ही सुनो, घूँट जहर का पीय !!
नदिया से सागर बडा, होता रोज बखान , ,,
विनम्र बनकर ज्ञान लो, दिखे नहीं अभिमान !
समुंदर में खार मिला, नदिया गुण की खान, ,,
विनम्र बनकर ज्ञान लो, दिखे नहीं अभिमान !!... ''तनु ''
व्यंग्य-बाण से वार है, कह कर आदरणीय !
चिकनी चुपड़ी ही सुनो, घूँट जहर का पीय !!
नदिया से सागर बडा, होता रोज बखान , ,,
विनम्र बनकर ज्ञान लो, दिखे नहीं अभिमान !
समुंदर में खार मिला, नदिया गुण की खान, ,,
विनम्र बनकर ज्ञान लो, दिखे नहीं अभिमान !!... ''तनु ''
No comments:
Post a Comment