Labels

Wednesday, July 19, 2017

                           



लेखन के मंच पर ही  मचाते क्यों विवाद , ,,
अज्ञानी लड़ते हैं यहाँ, ज्ञानी मन अवसाद !

ज्ञान बड़ा है बोझ से,अहंकार है नीच , ,,
आसान सुलझना इसे,क्यों उलझे हम खीज !

व्यंग्य-बाण से वार है,  कह  कर आदरणीय !
चिकनी चुपड़ी ही सुनो,  घूँट जहर का पीय !!

नदिया से सागर बडा, होता रोज बखान , ,,
विनम्र बनकर ज्ञान लो,  दिखे नहीं अभिमान !

समुंदर में खार मिला, नदिया गुण की खान, ,, 
विनम्र बनकर ज्ञान लो,  दिखे नहीं अभिमान !!... ''तनु ''

No comments:

Post a Comment