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Tuesday, July 25, 2017





मुँह बिसूरति ग़ज़ल चली,गीतों का है विलाप !
ठुमरी टप्पा दादरा,            खोया है आलाप !!

पत्र,पुष्प,फल गुम हुए, खोये उच्च विचार !
द्वेष दम्भ पाखंड में,    उलझा सब संसार !!

भाव विधा कुछ भी नहीं   शब्दों का जंजाल !
दग्ध शब्द में छंद भी,      लगते हैं  कंकाल !!

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