जीवन ये नाटक नहीं, सच्चाई से नाम !
इक दिन मुखड़ा धुल गया,बिगड़े सारे काम!!
मोती थी किरचा बनी, खोया अपना ताब !
ज़ंग लगा लोहा हुई , लाय कहाँ से आब !!
रात चाँद की बावरी, पर्वत ऊपर मौन , ,,
मुखड़ा देखे झील में, सपने बुनता पौन !!
सही गलत के फेर में, सच को सुनता कौन !
हर कोई अपनी कहे, बातें धुनता मौन !!
अपने आप से लड़ते, हार गये हर जंग !
आइना वही का वही , आप हुए बेरंग !!.... ''तनु ''
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