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Wednesday, July 19, 2017





जीवन ये नाटक नहीं,        सच्चाई से नाम ! 
इक दिन मुखड़ा धुल गया,बिगड़े सारे काम!! 

मोती थी किरचा बनी, खोया अपना ताब !
ज़ंग लगा लोहा हुई ,  लाय कहाँ से आब !!

रात चाँद की बावरी,  पर्वत ऊपर मौन  , ,,
मुखड़ा देखे झील में, सपने बुनता पौन !!

सही गलत के फेर में,  सच को सुनता कौन ! 
हर कोई अपनी कहे,        बातें धुनता मौन !!

अपने आप से लड़ते,   हार गये हर जंग ! 
आइना वही का वही ,    आप हुए बेरंग !!.... ''तनु ''

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