हर जां बेजां की आते ही जहां में तय हो जाती है मंज़िल !
जैसे सागर की उठती गिरती लहरों का किनारा है मंज़िल !!
धरती हो सूरज हो या चाँद - तारे सभी की हैं मंज़िलें जुदा !
चलो कि जागे हुए हैं चिराग नहीं लक्ष्य बिना कोई है मंज़िल !!"तनु "
जैसे सागर की उठती गिरती लहरों का किनारा है मंज़िल !!
धरती हो सूरज हो या चाँद - तारे सभी की हैं मंज़िलें जुदा !
चलो कि जागे हुए हैं चिराग नहीं लक्ष्य बिना कोई है मंज़िल !!"तनु "
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