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Saturday, July 26, 2014

हर जां बेजां की आते ही जहां में  तय हो जाती है मंज़िल !
जैसे सागर की उठती गिरती लहरों का किनारा है मंज़िल !!
धरती हो  सूरज हो या  चाँद - तारे सभी की हैं मंज़िलें जुदा !
चलो कि जागे हुए हैं चिराग नहीं लक्ष्य बिना कोई है मंज़िल  !!"तनु "

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