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Thursday, July 24, 2014


       

संस्कारों की जल गयी होली,
तमन्नायें हुईं धूमिल!
मिटी आस अब सब कुछ खोया,
सूझे कहीं नहीं मंज़िल!!

आदर खोया निरादर पाया,
टूटी मन की आस!
ऐसे रिश्ते बना बैठे है,
जो नहीं कुछ ख़ास!
सजदा कहाँ कहाँ पर करता ,
फिर भी है बुजदिल!!
संस्कारों की जल गयी होली
तमन्नायें हुईं धूमिल …

ढूँढे अपने नए आसरे,
आज यार दोस्त हैं खास!
माता पिता की अच्छी बातें,
लगती है बकवास!
दादी नानी की प्यारी कहानी!
सुने न कोई संगदिल!!
संस्कारों की जल गयी होली
तमन्नायें हुईं धूमिल …।

दृष्टि कहो क्यों गिद्ध हो गयी,
मानवता निषिद्ध हो गयी!
दुर्देव मनुष्य का ग्रास बनी,
कलियाँ काल कलवित हो गयीं !
काल व्याल की बात कहाँ है ?
मानव से ही बचना मुश्किल!!!
संस्कारों की जल गयी होली
तमन्नायें हुईं धूमिल .... तनुजा ''तनु ''









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