न गुलों की न खारों की ही परवाह करती,
जिंदगी का क्या वो तो यूँ भी गुजर जाती !
तुम होते तो क्या था न होते तो क्या था,
बरसने से पहले बदली यूँ भी घुमड़ जाती !
बहाया था पसीना कभी पानी की तरह,
शबनम का क्या पत्तों से यूँ भी उतर जाती!
मैं ये कहूँ वो ले के गयी मेरा सब्र ओ करार,
फायदा क्या पूछने से वो तो यूँ भी मुकर जाती !
दे अगर कोई दिलासा आंसू और बहे जाते हैं ,
दरिया ए सैलाब का क्या वो तो यूँ भी उमड़ आती !
ये क्या ?… सारे ग़म कौन लेता है किसके ?
जिंदगी का क्या वो तो यूँ भी सुधर जाती !"तनु "
जिंदगी का क्या वो तो यूँ भी गुजर जाती !
तुम होते तो क्या था न होते तो क्या था,
बरसने से पहले बदली यूँ भी घुमड़ जाती !
बहाया था पसीना कभी पानी की तरह,
शबनम का क्या पत्तों से यूँ भी उतर जाती!
मैं ये कहूँ वो ले के गयी मेरा सब्र ओ करार,
फायदा क्या पूछने से वो तो यूँ भी मुकर जाती !
दे अगर कोई दिलासा आंसू और बहे जाते हैं ,
दरिया ए सैलाब का क्या वो तो यूँ भी उमड़ आती !
ये क्या ?… सारे ग़म कौन लेता है किसके ?
जिंदगी का क्या वो तो यूँ भी सुधर जाती !"तनु "
No comments:
Post a Comment