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Sunday, September 24, 2017

कैसा देश दे रहे !.





पैरहन बिन खुद सबको गणवेश दे रहे;
अनगिन गुरूजी हमको सन्देश  दे रहे !

 गुड़ से करे परहेज और खाये गुलगुले ;
संयम नियम धारो जग को उपदेश दे रहे !

खो गयी हैं बुलबुलें रोता है ये चमन ;
फैला के जाल कैसा खग को परिवेश दे रहे!

लूटते है सरेआम और गुनाह से बरी ;
क्यों हम खुदारा ठग को दरवेश दे रहे !

''तनु ''अमिय गटक हलाहल रहे बाँटते;
सींचना विष का क्यों ठठ को देश दे रहे !. ''तनु''








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