पैरहन बिन खुद सबको गणवेश दे रहे;
अनगिन गुरूजी हमको सन्देश दे रहे !
गुड़ से करे परहेज और खाये गुलगुले ;
संयम नियम धारो जग को उपदेश दे रहे !
खो गयी हैं बुलबुलें रोता है ये चमन ;
फैला के जाल कैसा खग को परिवेश दे रहे!
लूटते है सरेआम और गुनाह से बरी ;
क्यों हम खुदारा ठग को दरवेश दे रहे !
सींचना विष का क्यों ठठ को देश दे रहे !. ''तनु''
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