मुसाफिर हूँ, सफ़र से कैसे अधीर हो जाऊं;
थका बहुत हूँ, नहीं दिलग़ीर हो जाऊं !
सुब्ह से शब तलक समुन्दर भी नहीं यकसा ;
मनो उछलता सोचे तीर हो जाऊं !
नहीं दुआ में कम पड़ते तस्बीह के मोती ;
लिए ग़ुज़ारिश झोली, फ़क़ीर हो जाऊं !
ख़त्म पलों हो जाए उस दोस्ती का क्या ;
लम्हों हिसाब तो लो मैं ज़हीर हो जाऊं !
क़र्ज़ हुई ज़िंदगी जीवन रहा भटकता सा ;
किश्त चुका दूँ साँसों की तस्वीर हो जाऊं!!
किसी किताब में लिखे हर्फों जैसा ;
ख़ुदा लिखे और मैं तहरीर हो जाऊं !!
ख़ुदा देखे और मैं नज़ीर हो जाऊं .!!..''तनु''
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