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Thursday, September 21, 2017

मुसाफिर हूँ,




मुसाफिर हूँ,  सफ़र से कैसे अधीर हो जाऊं;
थका बहुत हूँ,   नहीं दिलग़ीर हो जाऊं !

सुब्ह से शब तलक समुन्दर भी नहीं यकसा ;

मनो उछलता सोचे तीर हो जाऊं !

नहीं दुआ में कम पड़ते तस्बीह के मोती ;              
लिए ग़ुज़ारिश झोली,  फ़क़ीर हो जाऊं !


ख़त्म पलों  हो जाए उस दोस्ती का क्या ; 

लम्हों हिसाब तो  लो मैं ज़हीर हो जाऊं !

क़र्ज़ हुई ज़िंदगी जीवन रहा भटकता सा ;

किश्त चुका दूँ साँसों की तस्वीर हो जाऊं!!


किसी किताब में लिखे हर्फों जैसा ;
ख़ुदा लिखे और मैं तहरीर हो जाऊं !!

अहा !! अभी ज़िंदगी में रौनक़ें हैं बहुत ;
ख़ुदा देखे और मैं नज़ीर हो जाऊं .!!..''तनु'' 




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