कान्ह के आँसू आँख ढल्यो ;
मन भीतर भीतर माय गल्यो!
तू क्यों सुध भूल गयो अपनी , ,,
कौन सो दुःख मन माय पल्यो !!
सार की ओर न कोई बढ़े ;
असार की सोर ओढ़े पड़े !
वासना में रहे मलिन मना , ,,
माटी में काहे नाहिं गड़े !!
उपासना सार भूल पल्यो ,
यही जान आँसू आँख ढल्यो
मन भीतर भीतर माय गल्यो !!
कभी दण्ड के बल राज चले ;
अब तो के उदण्ड राज चले !
सभी रीति नीति की बलि चढ़ी , ,,
क्यों दाह जलन की खाज चले !!
जन वैभव जाल माय रल्यो,
यही जान आँसू आँख ढल्यो
मन भीतर भीतर माय गल्यो !!
कब खोय गयी सुख की छहिया;
घर रोय रही गैया बछिया !
अब कातर मन की कौन सुने , ,,
कब कौन गहे उनकी बहिया !!
उर पीड़ा से गिरिधर जल्यो,
यही जान आँसू आँख ढल्यो ,,..
मन भीतर भीतर माय गल्यो !!
गोपियाँ बिरज की रोवत हैं ;
अँसुवन की माल पिरोवत हैं !
मैया बेटी बहना के दुख , ,,
सब नयनन मूंदी सोवत हैं !!
भाई कैसो भाई छल्यो ,
यही जान आँसू आँख ढल्यो ,,..
मन भीतर भीतर माय गल्यो !!
सुख माहि समय बरबाद करे !
कुछ नाम जपो मेरा दिल से , ,,
जब कृष्ण कृष्ण दिल नाद करे ,
सुख धाम सदा मेरो फल्यो
यही जान आँसू आँख ढल्यो ,,..
मन भीतर भीतर माय गल्यो !!... ''तनु ''
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