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Friday, September 22, 2017

कान्हा का दुख



कान्ह के आँसू आँख ढल्यो ;
मन भीतर भीतर माय गल्यो! 
तू क्यों सुध भूल गयो अपनी , ,,
कौन सो दुःख मन माय पल्यो !! 

सार की ओर न कोई  बढ़े ;

असार की सोर ओढ़े  पड़े !
वासना में रहे मलिन मना , ,,
माटी  में  काहे नाहिं गड़े !!
उपासना सार भूल पल्यो ,
यही जान आँसू आँख ढल्यो 
 मन भीतर भीतर माय गल्यो !!

कभी दण्ड के बल राज चले ;

अब तो के उदण्ड राज चले !
सभी  रीति नीति की बलि चढ़ी   , ,,
क्यों दाह जलन की खाज चले !!
जन वैभव जाल माय रल्यो, 
यही जान आँसू आँख ढल्यो 
मन भीतर भीतर माय गल्यो !!

कब खोय गयी सुख की छहिया;

घर रोय रही गैया बछिया !
अब कातर मन की कौन सुने , ,,
कब कौन गहे उनकी बहिया !!
उर  पीड़ा से गिरिधर  जल्यो,
यही जान आँसू आँख ढल्यो ,,.. 
मन भीतर भीतर माय गल्यो !!

गोपियाँ बिरज की रोवत हैं ;

अँसुवन की माल पिरोवत हैं !
मैया बेटी बहना के दुख , ,,
सब नयनन  मूंदी सोवत हैं !!
 भाई  कैसो भाई  छल्यो ,
यही जान आँसू आँख ढल्यो ,,.. 
मन भीतर भीतर माय गल्यो !!

दुख आय पड़े तो याद करे;
 सुख माहि  समय बरबाद करे !
कुछ नाम जपो मेरा दिल से  , ,,
जब कृष्ण कृष्ण दिल नाद करे  ,
सुख धाम सदा मेरो फल्यो 
यही जान आँसू आँख ढल्यो ,,..
 मन भीतर भीतर माय गल्यो !!... ''तनु ''

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