Labels

Monday, September 4, 2017

मंज़िल







अपना मकसूद औ माबूद भूला ,
 ये तो मंज़िल तेरी नहीं थी !!

उमीदों का मुंतहा और को बनाया,
 ये तो मंज़िल तेरी नहीं थी !!

कैसे रब का नाशुक्रा हुआ तू ,
ये तो मंज़िल तेरी नहीं थी !!

बहकावे और मक्र में उलझा,
 ये तो मंज़िल तेरी नहीं थी !!

नफ़्स की ख्वाहिशात औ चाहतें ,
 ये तो मंज़िल तेरी नहीं थी !!... ''तनु ''

No comments:

Post a Comment