पाँव में बेड़ियाँ थी
हाथ हथकडियाँ
और बगुलों की पाँत सा
उड़ता रहा मन !
गीत गाती बाँसुरी थी
गीत कितने गा चुकी थी
आज कंठ अवरुद्ध था
लय अब तो टूटता था
और भौंरों सा गाता
गुणता रहा मन !
किसको बाँहों में कसूँ
गीत मैं क्योंकर रचूँ
आज सलाखों बीच मैंहूँ
धुंध और कीच में हूँ
और सूना पन सजा
सुनता रहा मन !
चाँद भी दिखता नहीं
नीलाभ नभ रुचता नहीं
एक साँसों की कड़ी है
मनवा में उलझन बड़ी है
और अनहद नाद से
झूमता रहा मन !
कनक पिंजर मोह टूटा
सृजन सिंचित गीत रूठा
दृष्टि का आकाश भीगा
प्राणों का मधुमास रीता
और आँसू के खटोले
झूलता रहा मन !,,..''तनु''
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