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Friday, September 8, 2017

उड़ता रहा मन





पाँव में बेड़ियाँ थी 
हाथ हथकडियाँ 
और बगुलों की पाँत सा
 उड़ता रहा मन !

गीत गाती बाँसुरी थी
गीत कितने गा चुकी थी 
आज कंठ अवरुद्ध था 
लय अब तो टूटता था 
और भौंरों सा गाता 
गुणता रहा मन !

किसको बाँहों में कसूँ 
 गीत मैं क्योंकर रचूँ 
आज सलाखों बीच मैंहूँ 
धुंध और कीच में हूँ 
और सूना पन सजा 
सुनता रहा मन ! 

चाँद भी दिखता नहीं 
नीलाभ नभ रुचता नहीं 
एक साँसों की कड़ी है 
मनवा में उलझन बड़ी है 
और अनहद नाद से 
झूमता रहा मन !

कनक पिंजर मोह टूटा 
सृजन सिंचित गीत रूठा 
दृष्टि का आकाश भीगा
 प्राणों का मधुमास रीता 
और आँसू के खटोले  
झूलता रहा मन !,,..''तनु''





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