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Saturday, September 2, 2017

बुझती साँसे





सपने उसके 
बेकल मन 
बुझती साँसे 
चैन खोया है 

समय का पंछी  
नहीं रुकेगा 
कब उगेगा 
दाना बोया है 

बादल घनेरे 
शाम अजब है 
 छुप गए तारे 
चाँद सोया है 

कितना अन्धेरा 
रात नशीली 
काली काली 
काजल धोया है 

गीत होंठों के 
बने कहानी 
 दुनिया गाये 
कोयल गोया है

दर्द दिल का 
चमका आँसू 
लगता जैसे 
सागर रोया है 

गुजरा ज़माना 
रातें जागीं 
दिन रंगे 
नयन भिगोया है 

खेल समझ कर 
खुशियाँ छोड़ी 
अनजाने ही 
ग़म ढोया है 

संग साँस  के 
दुखो को झेला 
नहीं दिखेगा 
आँगन धोया है ,... ''तनु ''




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