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Thursday, September 7, 2017

कलम






 चल अब कलम को मना लूँ ;
   मील का पत्थर तो हटा लूँ !

बहुत राह तकते सूखे सफहे ;
कलम को मसि तो डुबा लूँ !

भावनाएँ जगने में देर है ;
रोती हुई बुलबुलें मना लूँ !

आँच ज़रा और बढ़ा दीजिये ;
दाने हैं कच्चे कुछ तो गला लूँ !

झूठ भारी बहुत कहे मीज़ान ;
झूठे सच का कैसे फैसला लूँ !

 कलम गीत  कलम ही गाये ;
 ये नश्तर की नोकें गला लूँ !... ''तनु''

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