चल अब कलम को मना लूँ ;
मील का पत्थर तो हटा लूँ !
बहुत राह तकते सूखे सफहे ;
कलम को मसि तो डुबा लूँ !
भावनाएँ जगने में देर है ;
रोती हुई बुलबुलें मना लूँ !
आँच ज़रा और बढ़ा दीजिये ;
दाने हैं कच्चे कुछ तो गला लूँ !
झूठ भारी बहुत कहे मीज़ान ;
झूठे सच का कैसे फैसला लूँ !
कलम गीत कलम ही गाये ;
ये नश्तर की नोकें गला लूँ !... ''तनु''
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