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Saturday, September 30, 2017

आते कई सिर.... ..




काटता  हूँ कई ??
फिर उग उग 
आते कई सिर.... .. 

संयम नियम की 
सारी  योजनाएँ  
हो जाती विफल 
आलस्य में घिर .... 

उठा नहीं पाता 
किसी भी दिन 
कभी सूरज को मैं 
कल ? शायद फिर 

मन से वचन से 
कर्म से भी मलिन 
क्यों नहीं रह पाता ??
मैं कभी स्थिर ... 

जिव्हा नासिका 
दृष्टि क्यों मेरे ??
कहने में नहीं मानों 
दूर जाएंगे तिर। ... 

पग मेरेअन्यायी हैं 
वहीँ हैं जाते 
जहां न जाना 
कितने रहे अधीर  ???

तुम हारे दस 
हम एक भी नहीं 
जतन से संभलते 
फिर पड़ जाते गिर !!.. 

रुकता आवागमन ??
नए पात तभी 
हैं आते जब 
पुराने जाते खिर ... 

काटता हूँ कई 
फिर उग उग 
आते कई सिर.. .. ''तनु ''








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