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Wednesday, September 27, 2017

कुछ लोगों की देहभाषा में इतना अधिक अभिनय होता है कि मुझे लगता है;काश ये रंगमंच पर सक्रिय होते तो देश को एक महान अभिनेता मिल जाता।
आज ही आत्मीय सखा  ने एक सुन्दर समस भेजा है जो कहता है "सत्य अत्यंत सरल है;हम उसे समझाकर नाहक कठिन बनाते हैं। देहभाषा और वाणी में अभिनय का अतिरेक भी सत्य का की स्थापना को कमज़ोर करता है।


क्षमा प्रार्थी  !!!!
नहीं हूँ मैं उनका ,
जो पीड़ित हैं उस दोष के,
जो है उच्चारण का !
जो है  वर्तनी का !
ख़ुशी है.......  
इस बात की . 
कि ,
आजकल … 
मैंने इस प्रकार की , 
गलतियों पर  ,
नज़र ! ध्यान  !! कान !!! देना बंद कर दिया है......... 
क्योंकि ,  
ऐसा करने वाले,
बीमार !
अवसादग्रस्त !!
चिढचिढे  !!! की श्रेणी में ……
शामिल किये जा रहे हैं………… 
मैं हूँ  !  अत्यंत  आनंदित !! 
प्रमुदित खुश !!!   तनुजा  ''तनु ''

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