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Monday, March 10, 2014

जिन्दा ही जिन्दे का भार ढोता है
पेट का पालन पैर से होता है
यूँ तो और भी तरीके हैं पेट भरने के
पर मेरा गुजर इसी से होता है

दौड़ाती है जब मुझे ये आग पेट की
सर्दी बारिश हो घनी या घाम जेठ की
यही कुरता यही गमछा यही फेंटा मेरा
तभी  तो कम पड़  गयी है आंट फेंटे की

कल जागता था तब भी थी फ़िक्र कल  की
आज जागता हूँ जब भी  है फ़िक्र कल की
कराहता हूँ पांव के छालों के साथ मैं
आज जो  फ़िक्र है वही  फ़िक्र कल ही की.………तनुजा  ''तनु 

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