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Wednesday, March 12, 2014

तुम  ………


क्यूँ लबों से अंगार बरसाते हो तुम ?
क्यूँ ग़मों के अम्बार लगाते हो तुम ?
खुद से अब डर भी जाओ !!
क्यूँ मुझे जिन्दा लाश बनाते हो तुम !!!


तो ?. खुदा को नहीं मानते हो तुम ?
क्यों बंदगी में सर झुकाते हो तुम ?
कभी वो तुम्हारा साथ दे देगा !
क्या यही आस लगाते हो तुम  ?


अपनी ही सूरत पे इतरा रहे हो तुम,
आग मेरे दिल में लगा रहे हो तुम!
आईने पर क्यों प्यार उमड़ आया है ,
देखकर अनदेखा किये जा रहे हो तुम!!


अच्छे कब लगोगे मुझे तुम ?
जब सादगी से रहोगे तुम !
ओढ़े फिरते हो ये नकली जामा,
उतार फैंको ये मुखौटा अब तुम !!




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