Labels

Tuesday, March 25, 2014

शाम होते ही पाप करते हो
 सुबह मंदिर क्यों जाते हो
जिंदगी क्यों जीते दिखावे की
भगवान को भ्रम से बहलाते हो

कर्मों की राह को पुण्यों से सींच
आत्म संयम की रेखा को खींच
भव बंधन को कर शिथिल
भव पार कर नयनों को मींच

जो जीव फंसे मझधार हैं
जिनके राम नाम आधार हैं
खाते शबरी के बेर जो
वही तो जीव के तारणहार हैं

उनकी शरण भवभंजन करे
 उनके गान  मन गुंजित करे
तू अनहद नाद से भर प्राण रे
तू गा हरे हरे तू  गा हरे हरे



No comments:

Post a Comment