शाम होते ही पाप करते हो
सुबह मंदिर क्यों जाते हो
जिंदगी क्यों जीते दिखावे की
भगवान को भ्रम से बहलाते हो
कर्मों की राह को पुण्यों से सींच
आत्म संयम की रेखा को खींच
भव बंधन को कर शिथिल
भव पार कर नयनों को मींच
जो जीव फंसे मझधार हैं
जिनके राम नाम आधार हैं
खाते शबरी के बेर जो
वही तो जीव के तारणहार हैं
उनकी शरण भवभंजन करे
उनके गान मन गुंजित करे
तू अनहद नाद से भर प्राण रे
तू गा हरे हरे तू गा हरे हरे
सुबह मंदिर क्यों जाते हो
जिंदगी क्यों जीते दिखावे की
भगवान को भ्रम से बहलाते हो
कर्मों की राह को पुण्यों से सींच
आत्म संयम की रेखा को खींच
भव बंधन को कर शिथिल
भव पार कर नयनों को मींच
जो जीव फंसे मझधार हैं
जिनके राम नाम आधार हैं
खाते शबरी के बेर जो
वही तो जीव के तारणहार हैं
उनकी शरण भवभंजन करे
उनके गान मन गुंजित करे
तू अनहद नाद से भर प्राण रे
तू गा हरे हरे तू गा हरे हरे
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