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Monday, March 3, 2014

शूल ,काँटा और कंटक………


एक ही काँटा नहीं राह कंटकाकीर्ण  है
गात ही घायल नहीं मन भी विदीर्ण है
कहती है माँ विधाता सच के साथ है
उनके शब्द शब्दशः मन पर उत्कीर्ण है


सत्य की राह में शूल हैं
बिना सच जीवन निर्मूल है
दे अपनी जवानी का वास्ता
जो अगर तुझे ये क़बूल है


चलते ही गए कांटे चुभते ही गए
वो न रुके कहीं वो बढ़ते ही गए
जो ये ठान लिया ये ही लक्ष्य है
वो तो बिंधते गए वो बंधते गए


रसरंग में डूब कर शूल ही मिलते हैं
भोग में डूब कर रोग ही मिलते हैं
बर्बाद क्यों कर रहे हो जवानी अपनी
योगी इस संसार में बिरले ही मिलते हैं


माफ़ी तो मांग ऐ खता करने वाले
दुआओं में अब भी तू  है ऐ जाने वाले
तेरी याद काँटों की राह है
मेरा सब कुछ लुट गया ओ लूट जाने वाले………तनुजा  'तनु'… 02 -03 -1978


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