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Wednesday, March 26, 2014

ज्वालामुखी  ……… 



मैं सुप्त हूँ मैं दग्ध हूँ !
मैं बोलकर भी नि:शब्द हूँ !!
भूमिगत हो अभिशप्त हूँ !
मैं सुप्त हूँ मैं दग्ध हूँ !!

 जल जाते अनगिन गाँव !
 जम जाते अगणित ठांव !!
 अथाह जल अगणित ज्वालाएँ , 
 अपने अंतर  समेटे हूँ !
 मैं तल्प लेकर तल्ख़ हूँ !!
 मैं सुप्त हूँ मैं दग्ध हूँ !!!

मेंरे आगे भूकम्प प्रबल !
मेंरे पीछे सुनामी सबल !!
आकार नहीं निराकार नहीं , 
धरती अम्बर लपेटे हूँ !
मैं तख़्त लेकर बेतख्त हूँ !!
मैं सुप्त हूँ मैं दग्ध हूँ !!!

करती दुर्देव से मुलाकातें !
काली  अमावस की रातें !!
मैं नव नवीन प्रणेता हूँ ,
अपना इतिहास रचेता हूँ !
मैं तत्व लेकर तत्वज्ञ हूँ !!
मैं सुप्त हूँ मैं दग्ध हूँ !!!

पाषाण हृदय को भेद भेद !
पावक ज्वालायें फटती हैं !!
धरती का सीना चीर चीर ,
जीव समस्त निपेटा हूँ !
तथापि मैं तद्रूप हूँ !!
मैं सुप्त हूँ मैं दग्ध हूँ !!!

भूडोल जायेगी लावा बिखर जाएगा !
गात और पात सब जल जाएगा !!
प्रात रात को भेद भेद ,
कठिन उदगार उलीचा हूँ !
मैं तर्ष लेकर तर्पित हूँ !!
मैं सुप्त हूँ मैं दग्ध हूँ !!!………… तनुजा '' तनु ''

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