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Wednesday, April 30, 2014

मित्रों आज मैं बहुत दुखी हूँ   साहित्यिक चोरी जैसी दर्दनाक घटना से , जो कि अंदर तक एसा  महसूस करा देती है कि जैसे कोइ अपना बच्चा चुरा ले जाए  . कविताएँ ,  अपनी लिखी कोई रचना और वो कहीं और दिखी किसी ओर के नाम से.…… ……बहुत बुरा लगता है  ................ है न। ……… 
मैंने अपने  ज्योतिषीय ज्ञान के माध्यम से इस बुरी लत से बचने के बारे में समझाने की कोशिश की है ये अक्षरशः सत्य है कि हम अपने ग्रह इस लत के द्वारा खराब कर रहे हैं  .......... 
अगर आप एसा कर रहे हैं तो कृपया सावधान हो जाइए। …………। 


मन में लाकर दुराग्रह !!
साहित्यिक चोरी  करे जो कोई,
ग्रहफल हो जाते सारे खराब ,
फ़िर उस जैसा दुखी न कोई !!
पहले राहु हुआ खराब !
सोचकर अनाप शनाप !!
क्योंकि ………… 
गन्दा विचार दिमाग मेँ आया ,
जिसने चोरी को उकसाया !
राहु साथ मंगल भी आया !!
क्योंकि……… 
मंगल चोरी करवाता है !
राहु उसको उकसाता है !!
सूरज चन्दा  साहित्य मेँ……
बुध शुक्र भी साहित्य मेँ……… 
गुरु ही है जो पूर्ण ब्रम्ह है !
साहित्य की शान उसी में है !!
 और चोऱी  पाप अक्षम्य है !!!
शनि यहाँ सच का राजा ,
झूठ को दिलवा कर सजा।… 
न्याय सदा कर जाता है !
जो झूठ का साथ निभाता है !!
वही चोर कहलाता है !!!
जो तुम करते कापी पेस्ट ,
खराब ग्रह होते जो थे बेस्ट !
कापी पेस्ट करने में ,
शनि केतु मंगल,
कर जाते हैं......... 
मिलकर दंगल !
व्यवहार होता जब खराब ,
 ग्रह खराब हो जाता है ,
सिर्फ चोरी की बात नहीं !
सब जगह यही दर्शाता है !!  तनुजा  ''तनु'' 


Tuesday, April 29, 2014




''नया सवेरा है नव वधु सा,  दप दप करते आये दिनकर !
चिड़ियों के गीत के संग,   गुन गुन करते आये मधुकर !!   तनुजा ''तनु''  
सूरज से रोशनी मिलती है  हुज़ूर ,
चाँद को है अपनी चाँदनी पे  गुरुर !
एक ही तो है  …खुदा ओ वफ़ा  … 
तू उसपे यकीं कर वो मिलेगी ज़रूर !!  ''तनु ''


फिर  .... 
नयनों में दौड़ गया ,
वो दादी का ग़ाँव !
मोगजी का कुँआ , 
वो पीपल क़ी छाँव  !!
पहले दादी की थी ये कहानी ,
फिर पापा की बनी कहानी
 है यह आप बीती नहीं सुनी सुनाई !
ऐसी ही कहानी है ये सब पर बीते भाई  !!
जगत की रीत यही है ,
यही सब होता आया !
ख़ुशी ख़ुशी मैंने इसको ,
इसलिए दोहराया ,
क्योंकि सठियाने का ,
अब मेरा जमाना आया !!!!!!!!!!!   तनुजा " तनु ''


Monday, April 28, 2014

दुआएं हैं कि आप अब सदा बीमार ही रहिये !
गुजारिश है कि दोस्तों को अब पास ही रखिये !!
बीमारी आपकी रहे सदा ही अब कायम !!!
उनको पास ही रखिये कृपया बीमार ही रहिये !!!!..''तनु''  

दिन काँटों की सेज न हो ,
रात दर्द से लबरेज न हो !
सुख दुःख तो है जीवन साथी !
बस जीवन की शाम न हो !! तनुजा ''तनु ''

Sunday, April 27, 2014



मैं हूँ कहाँ जब वो ख्यालों में हो ,
आँखें बंद करूँ वो मेरे सपने में हो !
यही तो है जो सुहाना लगता है ,
तुम रहो मै रहूँ और तनहाई हो !!  ''तनु ''

तम की बात करें हम क्यों ,
तम के साथ रहे हम क्यों ,
चलो दिनकर के साथ चलें हम !
तम को बाँच रहे हम क्योँ !!        तनुजा   ''तनु ''


जज्बातों के भाव नहीं होते,
दंगल के दाव नही होते !
ये गणित का सवाल नहीं,
इसमें उलझाव नहीं होते !! 'तनु '
कभी तो आ तू मेरी नींद से पहले !

रहके इंतज़ारी में कभी तू भी दहले !!


रोज़ क्यों कयामत की बात करता है !

क़यामत रोज़ है तेरे आने से पहले !!


गया है पर सदा के लिये नहीं !


आंसू हैं पर खून के नहीं !!

दूर ही सही पर साथ तो चलता है !


दर्द है पर दिल का तो नहीं !!………… तनुजा   ''तनु'' 

  




Saturday, April 26, 2014

मैं पुरुष !!!
मैं क्या बतलाऊं …
मैं पूरा ही तुम्हारा !
जग हार जीवन हारा …। 
कहलाता पति तुम्हारा !!!
मेरी हथेलियाँ कर्मठ हैं ,
सुगन्धित तुम्हारी हथेलियों की ,
मेहंदी से !!! 
चुनरी तुम्हारे सर की ,
छाया मेरी कर्मभूमि की !!!
 सिन्दूर बिंदिया नथनी सब ,
आधार बनते मेरे जीवन का …
जब तुम रहती सज धज के !
 तो मैं खुश रह पाता हूँ ,
जब आशीष तुम्हे मिलता !
 सदा सुहागन का .... 
तब मैं फूला नहीं समाता हूँ !!!
दिन दिन दूना कर्म करुं मैं ,
 यह मेरे मन आता !
न लजाये दूध माँ का ,
न लजाये कोख का नाता !!
मंगलसूत्र चूड़ियाँ पैजन .... 
इन पर ही तो मैं इतराता !!
इसीलिए तो मैं तुम्हारा …
पति कहलाता !!! ................... तनुजा '' तनु ''









काशी दर्शन करके अम्मा हुई निहाल ,
विश्व नाथ की नगऱी पहुंचें उनके लाल !
एक पंथ दो काज ……हैं अम्मा वाऱी वाऱी !
नाथ एसा कर जाओ के देश न हो बदहाल !! तनुजा ''तनु ''
चन्दा और सूरज  ............. 



चन्द्र रोशनी नहीं तुम्हारी,
सूरज से ये है कैसी यारी !
रातों को ही तुम दिखते हो ,
ढूंढे दिन में नज़रें हमारी !!


ऊषा  की हैं आँखें लाल ,
चमकीला है उसका भाल !
दप दप जब सूरज दमके है , 
और दमकते उसके गाल !!


थका थका सा सूरज शाम ,
रात को चाहे विश्राम !
चन्दा आये लेकर तारे ,
होती नहीं कहीं पर घाम !!


काली रात के साये यहाँ ,
पता नहीं सूरज है कहाँ !
चन्दा तारे साथ हैं सारे ,
है सूरज सबका बागवां !!…तनुजा ''तनु''    
वैसे तो इन शब्दों के अर्थ बड़े गूढ़ और विस्तृत हैं.....   इनकी विवेचना हर किसी के बस  की बात नहीं .......  अरुणिमा से लेकर  …   निशा रानी के आ जाने तक की दिनचर्या को  ……  इन गूढ शब्दोँ में इस मुक्तक में पिरोया  है  ……....... .............



ऊषा लेकर  'ज्ञान गंगा'  उतारे आरती .... .... ''साम''  की !
दिन को आगे खेता दिनकर आस जताय…....  ''दाम'' की !!
सधे चलो कर्म से संध्या तक डर कर ईष्ट के.....   ''दंड'' की !
रात स्वर्ग सी सुहानी रहे स्वर्णिम जीवन के …    ''भेद'' की !!……… तनुजा ''तनु ''

Friday, April 25, 2014

दिल काँटों की सेज न हो,
दर्द से दिल लबरेज़ न हो।
दर्दे जुदाई क्यों होगी ?
साँसों में कोई बसा न हो। …। 

मैं जलता सा.... सूखा वृक्ष हूँ  !
प्रीत तुम्हारी बिन अधूरा हूँ  !!
तुम श्वेत बादल बन छा जाओ !
कितने  ?  जीवन मैं तरसा हूँ !! तनुजा ''तनु ''



चित्र ; अशोक कुमार विश्वकर्मा जी के पटल से साभार 





Thursday, April 24, 2014

वाह रे मतवाला ………… बहुत है निराला !!
एक दिन का दूल्हा…………  भोला भाला !!!!
 ''कर्तव्य'' और ''अधिकार''  की कश्ती में,
 डूबता उतराता है.……  ये   ''मत ''  वाला !!!!   तनुजा  ''तनु ''

आंसू ही हैं जो इज़हारे  .... जज़बात करते हैं ,

कभी झील से तो कभी समंदर से बात करते है !

पर नज़रों  की उस झील का क्या ????

कुछ नमी लिए इश्क की  जो बात करते हैं !!!

ज़हर के बाद आंसू....  हर बार यही होता है !

परिवर्तन की गफलत , बारबार यही होता है !!

कर्तव्य और अधिकार की इस लड़ाई में !

कभी हँसता है और कभी ज़ार ज़ार रोता है !!   तनुजा ''तनु ''

Wednesday, April 23, 2014

सुप्रभात…………… 


दुख में  डूबी रजनी ,  बंद करे किताब  !

अरुणिमा है आई , नहीं चन्द्र में ताब  !! … तनुजा ''तनु ''

चन्द्र मतवाले का  … आगोश ,
रजनी सोयी पड़ी …  मदहोश ! 
ऊषा की है लाली छाई ,
दिनकर आये लेकर.... जोश !!  
इस ज़माने का दौर है आला ,
रजनी अश्व रंग है काला !
चढ़े न उस पर दूजा रंग……
डरता सप्त रश्मियों वाला !!  तनुजा ''तनु ''


 नित्य ही यह क्रम कैसा ?
संध्या भोर  संध्या भोर.... 
कहाँ से आते कहाँ को जाते ??
चुपके … बिना मचाये शोर !!  तनुजा ''तनु ''
 इंतहा हो गयी अब तो ज़हर की ,
 न पूछा हमें …  न ही खबर की !
 घूंट घूंट ज़हर औ तिल तिल मरना ,
 किसी ने खबर न दी हमें सहर की !!....... तनुजा ''तनु ''





जब किताबों का  दौर था ,
ज़माना  ए  गौर था …
सब डूबते  थे किताबों में ,
वो दौर भी क्या दौर था  !!!!!तनुजा  ''तनु ''
न गुज़रो उस दौर से कुछ भी न कहो ,
न बीते आप पर कुछ भी न कहो !
सभी हैं जो बनाते हैं कहानियां ,
इनसे भी न कहो उन से भी न कहो !! तनुजा  ''तनु ''

Tuesday, April 22, 2014

हँसते लोग कैसे कैसे ?
मानों उसके भी लगते पैसे…
फूल हँसते हों जैसे…  ऐसे
कभी तो हंस लो ऐसे ! ''तनु  ''

दुःख  व अफ़सोस …………… 


क्षमा प्रार्थी  !!!!
नहीं हूँ मैं उनकी  ,
जो पीड़ित हैं उस दोष के,
जो है उच्चारण की  !
जो है  वर्तनी की !
ख़ुशी है.......  
इस बात की . 
कि ,
आजकल … 
मैंने इस प्रकार की , 
गलतियों पर  ,
नज़र ! ध्यान  !! कान !!! देना बंद कर दिया है......... 
क्योंकि ,  
ऐसा करने वाले,
बीमार !
अवसादग्रस्त !!
चिढचिढे  !!! की श्रेणी में ……
शामिल किये जा रहे हैं………… 
मैं हूँ  !  अत्यंत  आनंदित !! 
प्रमुदित खुश !!!   तनुजा  ''तनु ''

आज की ये कविता मेरे बेटे को समर्पित है और उस जैसे हर युवा के लिए जो अपने कर्तव्य पथ पर अग्रसर हैं.................... 



चट्टानों पर नींद कहाँ है ?
फूलों वाली सेज कहाँ है ?
पर्वत अटल है लावा दिल में ,
चैन कहाँ किसी मंज़िल में ,
शीतल सुगंध हो बहना है ,
तुम्हे तो ऐसे चलना है।

कठिन राह है मंज़िल दूर ?
कंटक पत्थर हैं भरपूर ?
लालच करके छाँव दरख्त की
कभी रुक न जाना तुम ,
संकल्पित हो लक्ष्य ठान कर
तुम्हे तो ऐसे चलना है।

फूल हरषाये मन भरमाये  ?
आँधी पतझड़  रोके भटकाए ?
पथिक हो पथ से न डिगना ,
दीया बन सबको राह दिखाना ,
बन दीपक अब जलना है
तुम्हे तो ऐसे चलना है।    ''तनु ''
प्रभाती 



हर रात दीया ले जलती है  ………… 

हर रात दिए से चलती है !

चल कर  और जल जल कर यूं 

काली स्याह हो जाती है !!


ऊषा रंग है कर्म प्रधान ,

रच देता जीवन विधान !

रजनी काली चुपके चुपके ,

क्यों डाल देती व्यवधान  !!





काली रात के साये हैं ये , 

पथ कंटक पथराए हैं  ये ! 

कहीं डर कर खो न जाना , 

नहीं किसी को भाये हैं ये !!





मान लो……  चन्द्र तुम मेरे गले की फांस हो ,

जानता हूँ पूर्णिमा  .... पर सजे तुम ख़ास हो  !

एक ही निवाले में करूँ  !!!  भक्षण  तुम्हारा मैं.,

पर … छोड़ देता हूँ कि तुम रजनी की आस हो  !!












ग़मों को  ……… मन ही मन दोहराता है  …  ये आदमी  !
लतीफ़ो  को  दोबारा सुन कर  नहीं हँसता है …ये आदमी   !! "तनु ''
बड़  बोलों के बड़े बड़े  बोल ,
खुद खोल रहे अपनी ही पोल !
खिसिया खिसिया कर क्या करते …… ??????????
कौन ??   उन्हें बचाये……बम बम बोल ……… तनुजा ''तनु'' 

Monday, April 21, 2014


आज प्रकृति का रूप अनोखा  ............. 




 नटराज  !!!
 नृत्यरत हैं .... 
शीश से बहे गंग तरंग !
अर्ध चन्द्र हैं जटा जूट में  ,
हरित वर्ण की  गिरि श्रृंखला ....... 
बह्म ज्ञान उंडेले धरा यहाँ !!
द्वैत अद्वैत के मध्य खड़ा है !!
ब्रह्म ज्ञान का साधक अड़ा  है !!
ज्ञान गंगा हुई समाहित............. 
साधक के प्याले में ज्ञान भरा है  !!!!! तनुजा ''तनु ''





Photo: आज प्रकृति का एक नया रंग .....

पर्वत से फूटता जल-प्रपात ,
मानो कुदरत 
उड़ेल कर सुराही से मदिरा 
छलका रही हों 
झील नुमा प्याला ,
इसे देखते हुए जीना 
गोया ...
आँखों से घूँट घूँट
सोमरस  पीना |
पहाडी छटा ......
शायद धरती की सबसे बड़ी 
मधुशाला ..||
''पृथ्वी दिवस'' पर चुकाएँ कर्ज इस धरा का ,
मान कर अभिमान कर लें इस धरा का !
'' सेव द अर्थ सेव द लाइफ ''  मन्त्र साकार कर लें , 
आओ  अभिनन्दन....  करलें इस धरा का  !!




सुप्रभात  …………… 
 अंगड़ाई ले कर जागी तरुणाई ,
तमचुर ने  भी आवाज   लगाई !
 तमपति का तम दूर कर गई ,
  स्वर्ण किरण धरा पर छाई !!
जो दिल की कद्र करे   क्या ??   वो दिलदार दिल का है  ?
जो कद्र चेहरे की करे वो भी दिलदार दिल का है ??
मौजूद  है ''तनु''  इस दुनिया में दिल औ चेहरे की कद्र करने वाले ..........
जो दुःख ओ दर्द में साथ दे असली दिलदार दिल का है !!! 
उदधि का उद्दाम आकर्षण रहा मार्तण्ड को अपने बीच  !
आल्हादित हो लहरें उठ कर  लेंगी मानों गोद में खींच !!
धीमें  धीमें  ये खेल दिनमणि और लहरों का हुआ ,
थकन तपिश दूर हुई फिर दिनमणि आये दुनिया बीच !!!!  "तनु "


 बादलों में देखूं तो तुम हो !
 बादलों के पार भी तुम हो !!
 मैं आँख बंद भी करलूं ,
आँख में बादल में तुम हो !!…"तनु ''
आज तो नाच ही लेंगे 
सब को बांच  ही लेंगे 
आगये जो तख़्त पर  तनु एक बार 
सबको नचा ही लेंगे 
देखो तो उन्हें महफ़िल सजाये बैठे हैं ,
जिन्हे बुलाया नहीं वे भी आये बैठे हैं। .
खतरा तो  आवाम को नाम से ही था  तनु
 वो आवाज़ में सुनामी लाये बैठे हैं ..  ....

Sunday, April 20, 2014

गर्मियों की लम्बी दोपहर     …… कुछ न सूझे भाई !
इधर की तराजू उधर रख रहे ठाले  बैठे बनिया भाई !! तनुजा   ''तनु ''

Saturday, April 19, 2014


आदित्य आओ  !!!  दीप्तमान हो .... किरण किरण बिखराओ !
तुम अंशुमान हो.…… अंश अंश ,… में अंश अंशु ....भर जाओ !!

  क्यूं अनबोले पर अत्याचारी
 जनता क्यों फिरती मारी मारी,
  भाव बताओ दिल का अपने ,
 अब जिबह की किसकी बारी !

   ''तनु''

Friday, April 18, 2014


 सिगड़ी............

आज के आधुनिक समय में ये ज़रा कम ही देखने को मिलती है कभी बचपन में माँ जब सिगड़ी पर खाना पकाती थी तो उस पर पकी चीज़ों का स्वाद ही कुछ अलग होता था सर्दियों में जब इसके आसपास बैठ सर्दी की ठिठुरन दूर होती तो प्यार की गर्मी का एहसास होता था।  आज भी आधुनिक समय में इसके बदले रूप को हम देखते है तो बरबस हमें पुराने दिन याद आ जाते हैं … तो बीते दिनों की याद में ...........




मेरे दिल का प्यार 

गोदी का प्यार ,

मां का दुलार 

बीते दिनों की  .... प्यारी याद है  'सिगड़ी'…  




बातों के दौर 

यादों के दौर, 

ठहाकों के दौर
.. 
बड़ा दर्द दिल में  ....  सम्हाले है 'सिगड़ी'...





  उम्बी  भुन 


  भुट्टे मूंगफली भुन ,

  शकरकंद और बैंगन भून

  जाने कितनों  का  ....  पेट पाले है  'सिगड़ी'...




 स्वाद की रानी .…  

 बदली है जिंदगानी ,

 सर्दी में 'कांगड़ी',


 पार्टी का बारबेक्यू.


  सर्द रात में  ....   अलाव सा जागे है 'सिगड़ी' ...





 रहे मन उदास

 कोई हो पास 

 अपनों की प्यास,

 परायों की आस

..
  बुझनें के बाद …   चुपके से क्यों चमके है 'सिगड़ी'... 




-तनुजा 'तनु'