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Saturday, April 26, 2014

मैं पुरुष !!!
मैं क्या बतलाऊं …
मैं पूरा ही तुम्हारा !
जग हार जीवन हारा …। 
कहलाता पति तुम्हारा !!!
मेरी हथेलियाँ कर्मठ हैं ,
सुगन्धित तुम्हारी हथेलियों की ,
मेहंदी से !!! 
चुनरी तुम्हारे सर की ,
छाया मेरी कर्मभूमि की !!!
 सिन्दूर बिंदिया नथनी सब ,
आधार बनते मेरे जीवन का …
जब तुम रहती सज धज के !
 तो मैं खुश रह पाता हूँ ,
जब आशीष तुम्हे मिलता !
 सदा सुहागन का .... 
तब मैं फूला नहीं समाता हूँ !!!
दिन दिन दूना कर्म करुं मैं ,
 यह मेरे मन आता !
न लजाये दूध माँ का ,
न लजाये कोख का नाता !!
मंगलसूत्र चूड़ियाँ पैजन .... 
इन पर ही तो मैं इतराता !!
इसीलिए तो मैं तुम्हारा …
पति कहलाता !!! ................... तनुजा '' तनु ''








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