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Tuesday, April 22, 2014

आज की ये कविता मेरे बेटे को समर्पित है और उस जैसे हर युवा के लिए जो अपने कर्तव्य पथ पर अग्रसर हैं.................... 



चट्टानों पर नींद कहाँ है ?
फूलों वाली सेज कहाँ है ?
पर्वत अटल है लावा दिल में ,
चैन कहाँ किसी मंज़िल में ,
शीतल सुगंध हो बहना है ,
तुम्हे तो ऐसे चलना है।

कठिन राह है मंज़िल दूर ?
कंटक पत्थर हैं भरपूर ?
लालच करके छाँव दरख्त की
कभी रुक न जाना तुम ,
संकल्पित हो लक्ष्य ठान कर
तुम्हे तो ऐसे चलना है।

फूल हरषाये मन भरमाये  ?
आँधी पतझड़  रोके भटकाए ?
पथिक हो पथ से न डिगना ,
दीया बन सबको राह दिखाना ,
बन दीपक अब जलना है
तुम्हे तो ऐसे चलना है।    ''तनु ''

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