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Saturday, April 5, 2014

समंदर आँख का सूखा कैसे  ?
दिल के जजबात हुए धुंआ कैसे  ?
उड़ते बादलों के पार घर था मेरा ,
बना शंपाओं का घर कैसे ?

ख़ुशी में जो दो आंसू बह निकले ,
लक्ष्य को पाने ख़ुशी में चल निकले ,
इरादे नेक हों लक्ष्य पाना कठिन नहीं !
कारवां बन गया साथ हम चल निकले !!

आंसू पोंछने की हिम्म्त नहीं ,
सुनों ! तो जीना भी जरुरी नहीं !
उठालो कुछ कर गुजरने की कसम !
गया वक्त फिर आयेगा नहीं !!





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