वजूद इंसान का खोखला हुआ !
अंदर ही अंदर यूँ पोपला हुआ !!
कभी ये ''वट'' की छाँव होता था ,
अपने ही नातों से बेगाना हुआ !!
नाम दोस्ती के दगा देता हुआ !
खंजर पीठ में चुभोता हुआ !!
कभी सोने सा मुहाल होता था ,
बिक रहा है छदाम होता हुआ !!
रहा ये सब्ज़बाग दिखाता हुआ !
नज़रें अपनी अपने से चुराता हुआ !!
कभी ये खेवनहार होता था ,
अब कश्ती अपनी डुबोता हुआ !!
अंदर ही अंदर यूँ पोपला हुआ !!
कभी ये ''वट'' की छाँव होता था ,
अपने ही नातों से बेगाना हुआ !!
नाम दोस्ती के दगा देता हुआ !
खंजर पीठ में चुभोता हुआ !!
कभी सोने सा मुहाल होता था ,
बिक रहा है छदाम होता हुआ !!
रहा ये सब्ज़बाग दिखाता हुआ !
नज़रें अपनी अपने से चुराता हुआ !!
कभी ये खेवनहार होता था ,
अब कश्ती अपनी डुबोता हुआ !!
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