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Friday, April 4, 2014

मुक्तक 


दायित्व मन का गुरुर है ,
कुछ कर गुजरने का सुरूर है !
कोई साथ दे या न दे कभी ,
वफ़ा का साथ जरुर है !!


मैं कैसे न साथ दूँ उसका ,
मैं क्यों न साथ दूँ उसका,
वो मेरे खुदा  की नियामत है !
मैं निभाता हूँ बंदगी उसकी !!


अभाव में दायित्व बोझ अधिक है ,
चाह कर भी मुंह फेरना कठिन है ,
तू तूफान में भी नैया खेते रहना !
भंवर की  राह है और पतवार टूटी है !!

मंज़िल का पता देता है चमकता सितारा ,
दूर ठिकाना होगा वहीँ  पर  कहीं हमारा ,
कितनें ही कांटे बिखरे हों राह में अपनी ,
छूटे न कभी हमारा साथ ये प्यारा प्यारा  !!

पत्थर को तराशना फिर बुत को बनाना ,
इक बुत के लिए प्यारे जजबात सजाना ,
उपरवाला ही ये कर सकता है तनु ,
जजबातों को  आवाज़ अपनी से सजाना !!


















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