सुप्रभात
चन्दा तुम तो सदा के चोर ,
एक अदालत जब लगती भोर !
छुप जाते ले अपने सब संगी ,
ओढनी तारों की ले नई नकोर
चन्दा तुम तो सदा के चोर ,
एक अदालत जब लगती भोर !
छुप जाते ले अपने सब संगी ,
ओढनी तारों की ले नई नकोर
सूर्य तपस्वी चन्द्र हठी हैं ,
बातें चन्द्र की बड़ी बड़ी हैं.
पखवाड़े पखवाड़े बदलता रूप,
रजनी सितारों से रूठी पड़ी है।
अपने रथ पर आये दिनकर ,
राह से हटी रजनी छुपकर।
सात घोड़े हैं सात रंग के ,
आई रौशनी सफ़ेद छनकर।
राह से हटी रजनी छुपकर।
सात घोड़े हैं सात रंग के ,
आई रौशनी सफ़ेद छनकर।
भारती के भास्कर दिनकर ,
किरणों से सज उतरे दिवाकर।
मध्यान्ह का गर्वीला तेज ,
संध्या सिंदूरी निमंत्रित सुधाकर।
निशा बिखराये पात पर मोती ,
सूरज बुहारे पात पर मोती।
सोचो जो ये धरा न होती ,
आते नहीं पात पर मोती।
निशिनाथ रहे अपने चातुर्य ,
हरते रहे उदधि का गाम्भीर्य।
धारा मगन मनमौजी सजनी,
रही संवार अपना ही माधुर्य।
निशा बिखराये पात पर मोती ,
सूरज बुहारे पात पर मोती।
सोचो जो ये धरा न होती ,
आते नहीं पात पर मोती।
निशिनाथ रहे अपने चातुर्य ,
हरते रहे उदधि का गाम्भीर्य।
धारा मगन मनमौजी सजनी,
रही संवार अपना ही माधुर्य।
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