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Friday, April 18, 2014

सुप्रभात 



चन्दा तुम तो  सदा के चोर ,
एक अदालत जब लगती भोर !
छुप जाते ले अपने सब संगी ,
ओढनी तारों की ले नई नकोर 



सूर्य तपस्वी चन्द्र हठी हैं ,

बातें चन्द्र की बड़ी बड़ी हैं.

पखवाड़े पखवाड़े बदलता रूप, 

रजनी सितारों से रूठी पड़ी  है। 


अपने रथ पर आये दिनकर ,

राह से हटी रजनी छुपकर। 

सात घोड़े हैं सात रंग के ,

आई रौशनी सफ़ेद छनकर। 




भारती  के भास्कर दिनकर ,

किरणों से सज उतरे दिवाकर। 

मध्यान्ह का गर्वीला तेज ,

संध्या सिंदूरी निमंत्रित सुधाकर। 



निशा बिखराये पात पर मोती ,

सूरज  बुहारे पात पर मोती।  

सोचो जो ये धरा न होती ,

आते नहीं पात पर मोती। 


निशिनाथ रहे अपने चातुर्य ,

हरते रहे उदधि का गाम्भीर्य। 

धारा मगन मनमौजी सजनी, 

रही संवार अपना ही माधुर्य। 















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