प्रभाती
हर रात दीया ले जलती है …………
हर रात दिए से चलती है !
चल कर और जल जल कर यूं
काली स्याह हो जाती है !!
ऊषा रंग है कर्म प्रधान ,
रच देता जीवन विधान !
रजनी काली चुपके चुपके ,
क्यों डाल देती व्यवधान !!
ऊषा रंग है कर्म प्रधान ,
रच देता जीवन विधान !
रजनी काली चुपके चुपके ,
क्यों डाल देती व्यवधान !!
काली रात के साये हैं ये ,
पथ कंटक पथराए हैं ये !
कहीं डर कर खो न जाना ,
नहीं किसी को भाये हैं ये !!
मान लो…… चन्द्र तुम मेरे गले की फांस हो ,
जानता हूँ पूर्णिमा .... पर सजे तुम ख़ास हो !
एक ही निवाले में करूँ !!! भक्षण तुम्हारा मैं.,
पर … छोड़ देता हूँ कि तुम रजनी की आस हो !!
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