सिगड़ी............
आज के आधुनिक समय में ये ज़रा कम ही देखने को मिलती है कभी बचपन में माँ जब सिगड़ी पर खाना पकाती थी तो उस पर पकी चीज़ों का स्वाद ही कुछ अलग होता था सर्दियों में जब इसके आसपास बैठ सर्दी की ठिठुरन दूर होती तो प्यार की गर्मी का एहसास होता था। आज भी आधुनिक समय में इसके बदले रूप को हम देखते है तो बरबस हमें पुराने दिन याद आ जाते हैं … तो बीते दिनों की याद में ...........
मेरे दिल का प्यार
गोदी का प्यार ,
मां का दुलार
बीते दिनों की .... प्यारी याद है 'सिगड़ी'…
यादों के दौर,
ठहाकों के दौर
..
बड़ा दर्द दिल में .... सम्हाले है 'सिगड़ी'...
उम्बी भुन
भुट्टे मूंगफली भुन ,
शकरकंद और बैंगन भून
जाने कितनों का .... पेट पाले है 'सिगड़ी'...
स्वाद की रानी .…
बदली है जिंदगानी ,
सर्दी में 'कांगड़ी',
पार्टी का बारबेक्यू.
सर्द रात में .... अलाव सा जागे है 'सिगड़ी' ...
रहे मन उदास
कोई हो पास
अपनों की प्यास,
परायों की आस
..
बुझनें के बाद … चुपके से क्यों चमके है 'सिगड़ी'...
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