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Wednesday, May 14, 2014

सूरज मन मसोस विद्रूप हुआ !
देखते देखते अन्धेरा घुप हुआ !!
निमंत्रण पा संध्या का चंद्र पधारेंगे  .......... 
बादलों में सूर्य चन्द्र सरूप हुआ !!तनुजा ''तनु ''



रजनी रूठी ऊषा से गयी चन्द्र के पास !
दिवस रूठा संध्या से हो रहे सूर्य उदास !!
दोनों ढूंढ रहे हैं गुप्तचर हो कोई खास !  
उदित ''भोर का तारा''पूरी दोनों की आस !! तनुजा ''तनु '' 




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