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Tuesday, May 6, 2014

मैं क्या जानूँ गणित ग़ज़ल का ,
पढ़ लेती हूँ दिल अगणित का !
लिख देती पंक्ति दो चार ,
मिलता प्यार मुझे अनगिन का !!तनुजा ''तनु ''

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