जलती धरा ……
मिटटी का दर्द है आज ''मिटटी'' की तरह ,
सूरज नें फेंक दिए हैं अंगार''उसकी'' ही तरह !
जलती झुलसी हुई ही तो उड़ के जाती है ,
नमी की चाह में हलकी सी हुई जाती है !
अभ्र से आये ''आब'' की बौछारें होंगी ,
तब घुल जायेगी जलन ''जल'' में होगी ! ! तनुजा ''तनु ''
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