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Thursday, May 22, 2014

जलती धरा ……


मिटटी  का   दर्द  है आज  ''मिटटी'' की तरह ,

सूरज नें  फेंक दिए हैं अंगार''उसकी'' ही तरह !

जलती झुलसी हुई ही तो उड़ के जाती है ,

नमी की चाह  में हलकी सी हुई जाती है !

अभ्र  से  आये   ''आब'' की  बौछारें होंगी ,

तब घुल जायेगी जलन   ''जल''  में होगी ! ! तनुजा ''तनु ''

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