Labels

Monday, May 5, 2014

माया  झूठी … उलझा मन ,
जीवन बीता ... सिकुड़ा तन !
 टूटी पत्ती ....  उड़ती जाये, 
इसमें भटको … मत भरमाय !!

मन की सदा ही  …सुनता चल ,
सुन कर मन में  .... गुनता चल !
पता नहीं आँख कब ....मुंद जाये ,
इसमें भटको  … मत भरमाये !!

छूटी लाज  .... मन गर्वीला ,
भट्टी जली..... जला पतीला !
आँखों को तू… क्यों भटकाय,
इसमेँ भटको…मत भरमाय !!

दस सिर थे ....  एक न रहा ,
आज बस आज… ही रहा !
मन बुझे तन ....  गल जाये ,
इसमें भटको......मत भरमाय !!

चिता जलती....  धू - धू  कर ,
मन उड़ता क्यों....  सपनो पर !
दुनिया में आया  … सो जाये ,
इसमेँ भटको…मत भरमाय !!   .... तनुजा ''तनु ''




No comments:

Post a Comment